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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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बुद्धीहिं अणुचिंतेमाणे अणुचिंतेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिई वा उप्पत्ति
वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ। ___ सूत्र ३७. धारिणी देवी की यह बात सुन-समझकर राजा श्रेणिक बोले-“देवानुप्रिये ! तुम उदासीनता और चिन्ता यह सब छोड़ो और शरीर को जीर्ण मत करो। मैं ऐसे उपाय करूँगा जिससे तुम्हारा यह अकाल-मेघ का दोहद पूरा होगा।" उन्होंने रानी धारिणी को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और चित्ताकर्षक वचनों से आश्वस्त किया।
महल से बाहर निकलकर वे अपने सभा मण्डप में गये और पूर्व दिशा की ओर मुख कर अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गये। धारिणी देवी के इस अकाल दोहद को पूरा करने के सम्बन्ध में वे अनेक प्रकार के उपाय खोजने लगे। उन्होंने तरह-तरह की युक्तियों के सम्बन्ध में औत्पत्तिकी, वैनयिक, कार्मिक तथा पारिणामिक-चारों प्रकार की बुद्धि का उपयोग कर बार-बार विचार किया। बहुत विचार करने पर भी जब उन्हें कोई राह नहीं सूझी तो वे स्वयं भी हतोत्साह हो चिन्ता में डूब गये।
37. Hearing about and understanding the problem of Queen Dharini, King Shrenik said, “O beloved of gods! Stop worrying and torturing your body. I will do something and ensure that you are able to fulfill your Dohad of untimely-clouds." He assured her with his affectionate and encouraging words.
Leaving his palace he went into the assembly hall and sat on his throne facing east. He started contemplating about the possible ways and means to fulfill this Dohad of untimely-clouds of Queen Dharini. He applied his four types of wisdom and considered a variety of ways to achieve the desired: When he could not come up with any solution in spite of all his efforts, he became frustrated and worried. अभयकुमार का आगमन
-सूत्र ३८. तयाणंतरं अभए कुमारे पहाए कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकारविभूसिए पायवंदए पहारेत्थ गमणाए।
सूत्र ३८. इधर प्रातःकाल होने पर अभयकुमार ने स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर, सुन्दर वस्त्र-अलंकार धारण किये और अपने पिता राजा श्रेणिक की चरण वन्दना करने चल पड़े।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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