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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली सूत्र १०९. तए णं से जियसत्तू अप्पणो ओरोहंसि जाव विम्हिए चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी - "तुमं णं देवाणुप्पिए ! बहूणि गामागर जाव अडसि, बहूण य राईसरगिहाई अणुपविससि, तं अत्थियाई ते कस्स वि रण्णो वा जाव एरिसए ओरोहे agya जारिस णं इमे मह उवरोहे ? " सूत्र १०९. अपनी रानियों के सौन्दर्यादि से अभिभूत जितशत्रु ने तब चोक्खा से पूछा"हे देवानुप्रिये ! तुम अनेक ग्रामादि में अनेक राजा आदि के घरों में आती जाती हो । बताओ तुमने मेरे रनिवास जैसा कोई रनिवास भी देखा है क्या ?" ( ३८१ ) 109. Obsessed with the beauty of his queens King Jitshatru asked Chokkha when her preaching concluded, "Beloved of gods! You wander around, go to numerous villages (etc.) and visit many a king (etc.). Tell me if you have ever come across any seraglio like mine?” कूपमंडूक सूत्र ११०. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया जियसत्तुणा एवं वृत्ता समाणी ईसिं अवहसियं करेइ, करित्ता एवं वयासी - "एवं च सरिसए णं तुमे देवाणुप्पिया ! तस्स अगडदरस्स।" "केस णं देवाणुप्पिए ! से अगडददुरे ?" " जियसत्तू ! से जहानामए अगडददुरे सिया से णं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे, अण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे एवं मण्णइ - "अयं चेव अगडे वा जाव सागरे वा । " तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए ददुरे हव्वमागए। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्ददद्दूरं एवं वयासी - "से केस णं तुमं देवाणुप्पिया ! कत्तो वा इह हव्वमागए ? " तणं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी - " एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सामुद्दए ददुरे ।” तणं से कूवददुरे तं सामुदयं ददुरं एवं वयासी - " के महालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ?" तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी - " महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे ।” Jain Education International तणं से कूवददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्डित्ता एवं वयासी - " एमहालए णं देवाप्पिया ! से समुद्दे ? " CHAPTER-8: MALLI For Private Personal Use Only (381) www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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