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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३६९) KING ADINSHATRU 86. During that period of time King Adinshatru ruled over Hastinapur, the capital city of Kuru country. __सूत्र ८७. तत्थ णं मिहिलाऐ कुंभगस्स पुत्ते पभावईए अत्तए मल्लीए आणुजायए मल्लदिन्नए नाम कुमारे जाव जुवराया यावि होत्था। तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं. करेह अणेगखंभसयसण्णिविठें, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। __ सूत्र ८७. मिथिला नगरी के राजा कुम्भ का पुत्र और मल्लीकुमारी का छोटा भाई कुमार मल्लदिन्न वहाँ का युवराज था। एक दिन कुमार मल्लदिन्न ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा-“मेरे महल के उद्यान (प्रमदवन) में एक विशाल चित्रसभा का निर्माण कराओ।" सेवकों ने कुमार की आज्ञा का पालन कर उन्हें सूचना दी। 87. Prince Malladinna, the son of King Kumbh and younger brother of Princess Malli, was the heir to the throne of Mithila. One day Malladinna called his staff and said, “Construct a large art gallery in my palace garden.” The attendants carried out the order and reported back to him. सूत्र ८८. तए णं मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगरसेणिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बोय-कलिएहिं रूवेहिं चित्तेह। चित्तित्ता जाव पच्चप्पिणह। ____ तए णं सा चित्तगरसेणी तह ति पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सयाई गिहाई, तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तूलियाओ वन्नए य गेण्हति, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अणुपविसति, अणुपविसित्ता भूमिभागे विरचति, विरचित्ता भूमिं सज्जति, सज्जित्ता चित्तसभं हावभाव0 जाव चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था। __सूत्र ८८. फिर मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों के दल को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम लोग मेरी चित्रसभा को विभिन्न मुद्रा, भाव, विलास और चेष्टाओं युक्त चित्रों से परिपूर्ण कर दो।" कुमार की आज्ञा शिरोधार्य कर चित्रकार अपने घरों को लौट गये। तूलिकाएँ और रंग आदि सामग्री लेकर वे चित्रसभा में गये। वहाँ उन्होंने सारे क्षेत्र का विभाजन किया और अपने-अपने क्षेत्र को तैयार कर चित्र बनाने का कार्य आरंभ कर दिया। का CHAPTER-8 : MALLI (369) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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