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आठवाँ अध्ययन : मल्ली
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सूत्र ६३. इस पर उस पिशाच ने धर्मध्यान में लीन अर्हन्त्रक पर क्रुद्ध हो उस नाव को दो अंगुलियों में उठाया और सात-आठ ताड़ की ऊँचाई पर ले जाकर वही धमकी दोहराई। किन्तु अर्हन्नक तब भी अपने धर्म-ध्यान से विचलित नहीं हुआ।
63. Annoyed with Arhannak the demon now picked up the ship in his fingers, lifted it to a great height, and repeated the threat. Arhannak still remained undisturbed in his meditation. क्षमायाचना एवं कुण्डलों की भेंट __ सूत्र ६४. तए णं से पिसायरूवे अरहन्नगं जाहे नो संचाएइ निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे उवसंते जाव निविण्णे तं पोयवहणं सणियं सणियं उवरिं जलस्स ठवेइ, ठवित्ता तं दिव्वं पिसायरूवं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता दिव्वं देवरूपं विउव्वइ, विउव्वित्ता अंतलिक्खपडिवन्ने सखिंखिणियाइं जाव परिहिए अरहन्नगं समणोवासयं एवं वयासी
सूत्र ६४. जब वह पिशाच अर्हन्त्रक को निर्ग्रन्थ वचन से विमुख करने में सफल नहीं हुआ तो वह शान्त हो गया। उसके मन में खेद हुआ और उसने नाव को धीरे-धीरे समुद्र
की सतह पर रख दिया। फिर उसने अपना पिशाच रूप त्यागकर दिव्य देवरूप धारण किया और पंचरंगे तथा छमछम करते दिव्य वस्त्राभूषण पहनकर आकाश में स्थिर हो अर्हन्नक से कहाGIFT OF EARRINGS ____64. On failing to turn Arhannak against the preaching of the Nirgranth, the demon calmed down. It was repentant and put back the ship slowly on the surface of the sea. It then transformed its demonic appearance into a divine one with multicoloured dress and glittering divine ornaments. It stationed itself in the sky and said to Arhannak__सूत्र ६५. "हं भो अरहन्नगा ! धन्नोऽसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! जाव जीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविंद देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए बहूणं देवाणं मज्झगए महया सद्देणं आइक्खइ-“एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए अरहन्नए समणोवासए अहिगयजीवाजीवे, नो खलु सक्का केणए देवेण वा दाणवेण वा निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा जाव विपरिणामित्तए वा।
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BT CHAPTER-8: MALLI
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