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________________ ( ३५०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Oats ITAMATN क सूत्र ५६-५७. (समन्वित अर्थ) पिशाच की जाँघे ताड़ के पेड़ जैसी लम्बी थीं और बाहें आकाश छूती थीं। उसके बिखरे हुए बालों से मस्तक ऐसा लग रहा था जैसे फूटा हुआ हो। वह काजल, काले चूहे, भँवरों के झुण्ड, उड़द के ढेर, काले भैंसे और जल भरे मेघ जैसे काले रंग का था। उसके नाखून छाजले जैसे थे। उसकी जीभ हल के फल जैसी थी और होंठ लम्बे थे। उसकी छीदी-छीदी दाढ़ें सफेद, गोल, तीखी, मजबूत, मोटी और टेड़ी-मेढ़ी थीं। उसकी जीभ चिरी हुई थी और दोनों अग्र भाग बिना म्यान की धारदार दो तलवारों जैसे पतले व चंचल थे और उनसे निरन्तर लार टपक रही थी। वे दोनों रस लोलुप जीह्वा मुँह से बाहर निकले हुए थे और तेजी से लपलपा रहे थे। उसका लार टपकाता, झाँकते लाल-लाल तालू वाला खुला मुख बड़ा ही विकृत और वीभत्स दिखाई देता था। उसके मुँह से अग्नि ज्वालाएँ निकल रही थीं जिससे वह ऐसा लगता था जैसे किसी काले पहाड़ की सिंदूर से भरी गुफा हो। उसके गाल पिचके हुए और चमड़ी सिकुड़ी हुई थी। उसकी नाक छोटी, चपटी, टेढ़ी और टूटी हुई थी। क्रोध के कारण उसके नथुनों से निष्ठुर और कर्कश फूत्कार निकल रही थी। उसका चेहरा विकृत और भीषण था। उसके दोनों कान लम्बे और हिलते हुए थे, उनके आँख की कोर को छूते किनारे ऊँचे उठे हुए थे और उन पर लम्बे-बिखरे बाल थे। उसके नयन पीले और जुगनू की तरह चमकते हुए थे। उसकी भृकुटि तनी हुई थी और ललाट पर तड़ित जैसी दिख रही थी। उसके गले में नर-मुंडों की माला लिपटी थी। उसने गोनस साँपों को परिधान की तरह लपेटा हुआ था और रेंगते-फुसकारते साँप, बिच्छू, गोह, चूहा, नेवला और गिरगिट जैसे जन्तुओं की विचित्र माला पहनी हुई थी। भयावह फन वाले फुसकारते दो काले साँपों को उसने लम्बे लटकते कुंडलों की तरह कान में धारण कर रखा था। अपने दोनों कंधों पर उसने बिलाव और सियार बैठा रखे थे। छू-छू करते चमकते उल्लू को उसने मुकुट के समान सिर पर धारण कर रखा था। वह घंटे के कर्णभेदी नाद के समान भयंकर और कायरों के दिल को दहलाने वाला क्रूर अट्टहास कर रहा था। उसके सारे शरीर पर चर्बी, रक्त, मवाद, माँस और मल लिपटे थे। वह सभी प्राणियों के लिये त्रासदायक था। उसकी छाती चौड़ी थी। उसने नाक, मुख, नेत्र और कान युक्त अद्भुत व्याघ्र-चर्म पहन रखा था। उसने अपने दोनों हाथों में रस और रुधिर से गीला हाथी का चमड़ा ऊपर की ओर उठा रखा था। वह नाचता, आकाश को फोड़ता, गर्जन और अट्टहास करता सामने से आता दिखाई दे रहा था। वह अपने कठोर, क्रूर, अनिष्ट, उत्तापजनक, अशुभ, अप्रिय और कर्कश स्वर से नाव पर बैठे लोगों को डरा रहा था। 56-57. (assimilated meaning) Its thighs were as long as a palm tree and hands touched the sky. Due to its disheveled hair its head Came HDal (350) JNATA DHARMA KATHANGA SÜTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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