SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CRIL ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( ३३८ ) Om 34. Once on the occasion of the annual snake-worship festival, Queen Padmavati approached King Pratibuddhi and said, “Sire! Tomorrow I have to worship the serpent-god. I wish to seek your permission and go. I also wish that you too join me in the worship rituals." __सूत्र ३५. तए णं पडिबुद्धी पउमावईए देवीए एयमटुं पडिसुणेइ। तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुनाया हद्वतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्मवित्ता एवं वयासी“एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम कल्लं नागजन्नए भविस्सइ, तं तुब्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावित्ता एवं वयह____ “एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नागजन्नए भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! जलथलय-भासुरप्पभूयं दसद्धवन्नं मल्लं नागघरयंसि साहरह, एगं च णं महं सिरिदामगंड उवणेह। तए णं जलथलयभासुरप्पभूएणं दसद्धवन्नेणं मल्लेणं णाणाविहभत्तिसुविरइयं करेह। तंसि भत्तिसि हंस-मिय-मऊर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेयं ईहामियं जाव भत्तिचित्तं महग्धं महरिहं विपुलं पुष्फमंडवं विरएह। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एगं महं सिरिदामगंडं जाव गंधधुणिं मुयंत उल्लोयंसि ओलंबेह। ओलंबित्ता पउमावइं देविं पडिवालेमाणा पडिवालेमाणा चिट्ठह।'' तए णं ते कोडुंबिया जाव चिट्ठति। सूत्र ३५. प्रतिबुद्धि ने रानी से अपनी सहमति प्रकट की। रानी ने प्रसन्न हो सेवकों को बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो, कल मेरे यहाँ नागपूजा होगी। अतः तुम माला बनाने वालों को बुलाओ और कहो___ 'कल महारानी नागपूजा करेंगी अतः तुम लोग जल-थल के पंचरंगे ताजा फूलों का एक गजरा बनाकर नाग-मन्दिर में लाओ। साथ ही उन फूलों की सुन्दर रचनाओं से उस मन्दिर को सजाओ। उस रचना में हंस, मृग, मोर, क्रौंच, सारस, चकवा, मैना, कोयल, ईहामृग, वृषभ, घोड़ा आदि के चित्रों से भरा, प्रतिष्ठित लोगों के बैठने योग्य एक विशाल मंडप बनाओ। उस मंडप के बीच में सुरभित पुष्यों के गजरे छत पर लटकाओ।' यह सब कार्य पूर्ण कर वहीं रुको और महारानी की प्रतीक्षा करो।" यह कार्य पूर्ण कर सेवक महारानी की प्रतीक्षा करते मंदिर में रुक जाते हैं। 35. King Pratibuddhi accepted the queen's proposal. The joyous queen called her staff and said, "Beloved of gods! Tomorrow I shall worship the serpent-god. As such, you call the garland makers and tell them - KOTA (338) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy