________________
आठवाँ अध्ययन : मल्ली
(३३७)
--
-
राजा प्रतिबुद्धि
सूत्र ३३. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसले नाम जणवए होत्था। तत्थ णं सागेए नाम नयरे होत्था। तस्स णं उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं महं एगे णागघरए होत्था दिव्वे सच्चे सच्चोवाए संनिहियपाडिहेरे।
तत्थ णं नयरे पडिबुद्धी नाम इक्खागराया परिवसइ, तस्स पउमावई देवी, सुबुद्धी अमच्चे साम-दंड भेद-उपप्पयाण-नीतिसुपउत्त-णयविहण्णू जाव रज्जधुराचिंतए होत्था।
सूत्र ३३. काल के उसी भाग में कौशल देश के साकेत नगर से उत्तर-पूर्व दिशा में एक नाग मंदिर था। उस चमत्कारी मन्दिर में की गई सेवा सफल होती थी। उसके अधिष्ठाता नागदेव का कथन सत्य होता था।
साकेत नगर में इक्ष्वाकुवंश का राजा प्रतिबुद्धि राज्य करता था। उसकी पटरानी का नाम पद्मावती था और अमात्य का नाम सुबुद्धि था। सुबुद्धि बड़ा नीतिवान था और योग्यता से राज्य का संचालन करता था।
KING PRATIBUDDHI
33. During that period of time, on the north eastern side of the city of Saket in the Kaushal country there was a temple of a serpent-god. Any worship done in that temple was said to be fruitful. Whatever the deity conveyed always came true.
The king of Saket city was Pratibuddhi; he belonged to the Ikshvaku clan. The name of his principal queen was Padmavati, and that of his minister was Subuddhi. Minister Subuddhi was an able and just administrator; he managed the affairs of the state well.
सूत्र ३४. तए णं पउमावईए अन्नया कयाइं नागजन्नए यावि होत्था। तए णं सा पउमावई नागजन्नमुवट्ठियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल. जाव बद्धावेत्ता एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! मम कल्लं नागजन्नए यावि भविस्सइ, तं इच्छामि णं सामी ! तुब्भेहिं अब्भणुनाया समाणी नागजन्नयं गमित्तए, तुब्भे वि णं सामी ! मम नागजन्नंसि समोसरह।"
सूत्र ३४. एक बार नागपूजा के उत्सव पर पद्मावती देवी राजा प्रतिबुद्धि के पास गई और बोली-“स्वामी ! कल मुझे नागपूजा करनी है। आपकी अनुमति लेकर मैं पूजा के लिये जाना चाहती हूँ। मेरी इच्छा है कि आप भी उस पूजा में सम्मिलित हों।"
Page
CHUDAI
CHAPTER-8 : MALLI
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org