________________
DO
( १८ )
white like a heap of silver, yawning and playfully descending from the sky, entered her mouth. She got up immediately after this dream.
सूत्र १४. तए णं सा धारिणी देवी अयमेयारूवं उरालं, कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्टा चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया धाराहय-कलंबपुप्फगंपिव समूससियरोमकूवा तं सुमिणं ओगिण्हइ । ओगिण्हइत्ता सयणिज्जाओ उट्ठेति, उट्ठेइत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहइत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए
हंससरिसीए गई जेणामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता सेणिय रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाहिं, हिययगमणिज्जाहिं, हिययपल्हायणिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय-गंभीर - सस्सिरीयाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी पडिबोहे | पडिबोहेत्ता सेणिएणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी णाणामणि कणग-रयण-भत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीया । निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहिअं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु, सेणियं रायं एवं वयासी
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
एवं खलु अहं देवाप्पिया ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए जाव नियगवयणमइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं एयरस णं देवाणुप्पिया ! उरालस्स जाव सुमिणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?
सूत्र १४. ऐसे उदारादि फलयुक्त महास्वप्न को देखकर जागी धारिणी देवी आनन्दमग्न हो गई । उसका मन हर्ष विभोर हो उठा । वर्षा से भीगे कदम्ब के फूल की तरह उसका रोम-रोम पुलक उठा। उसने सपने को याद किया और तब शय्या से उठ पाद- पीठ पर होती हुई धरती पर उतरी। वह पूर्ण जाग्रत हो तत्काल मन्द मन्द चपलतारहित राजहंस जैसी चाल से राजा श्रेणिक के कमरे में गई । इष्टादि गुणों से संपन्न (इष्ट = अच्छी लगने वाली, प्रिय, मन को मुग्ध करने वाली, हृदय को प्रसन्न करने वाली, मधुर उदार शिष्टतायुक्त, सुन्दर शब्दावली से मंगलकारक बनाने वाली ) वाणी का उच्चारण कर उसने श्रेणिक राजा को जगाया और उनकी अनुमति लेकर वह सोने के रत्नजड़ित और चित्रित भद्रासन पर बैठीं। आश्वस्त होकर दोनों हाथ जोड़, मस्तक के ऊपर घुमा, ललाट से छुआकर मधुर स्वर में श्रेणिक राजा से कहा
"हे देवानुप्रिय ! आज जब मैं अपनी शय्या पर सो रही थी तब सपने में एक भव्य हाथी को अपने मुँह में प्रवेश करते देखकर जाग पड़ी। हे देवानुप्रिय ! इस उदारादि गुण संपन्न स्वप्न का भविष्य में क्या कल्याणकारी फल मिलेगा ?"
(18)
Jain Education International
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org