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सातवाँ अध्ययन : रोहिणी ज्ञात
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इस पारिवारिक बोध कथा से यह तथ्य और भी स्पष्ट होकर उभरता है कि जो नियम अध्यात्म-पथ के लिए श्रेयस्कर हैं वही नियम प्रयोगात्मक दृष्टि-भेद से संसार-पथ के लिए भी श्रेयस्कर होते हैं। स्वस्थ विवेक बुद्धि समान रूप से प्रभावी होती है चाहे व्यक्ति सांसारिक हो अथवा आध्यात्मिक।
| उपनय गाथा जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह णाइजणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाई।।१।। जह सा उल्झियणामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसण-गारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया॥२॥ तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरुविदिण्णाई। पडिवज्जिउं समुज्झइ, महव्वयाइं महामोहा॥३॥ सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कारभायणं होइ। परलोए उ दुहत्तो, नाणाजोणीसु संचरइ॥४॥ जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा। पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव।।५।। तह जो महब्बयाई उवभंजुइ जीवियति पालितो। आहाराइसु · सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए।॥६॥ सो इत्य जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ति। विउसाण नाइपुज्जो परलोयम्मि दुही चेव।।७।। जइ व रक्खिय बहुया, रखियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता।।८॥ तह जो जीवो सम्म पडिवज्जिज्जा महव्वए पंच। पालेइ निरइयारे, पमायलेसंपि वज्जेंतो।।९।। सो अप्पहिएक्करई, इहलोयंमि वि विऊहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खं पि पावेइ।।१०॥ जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वड्ढित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित।।११।। तह सो भव्यो पाविय वयाई पालेइ अप्पणा सम्म। अन्नेसि पि भव्वाणं देइ अणेगेसिं हियहेऊं।।१२।।
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CHAPTER-7 : ROHINI JNATA
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