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सातवाँ अध्ययन : रोहिणी ज्ञात
सूत्र ५. उज्झिका ने धन्य सार्थवाह के आदेश को 'जो आज्ञा' कहकर स्वीकार किया, उसके हाथ से पाँच दाने चावल लिये और वहाँ से चली गयी। अकेली होने पर उसने मन ही मन सोचा - " पिताजी के भण्डार में चावलों के अनेक पल्य हैं ( साढ़े तीन मन ) । जब भी वे मुझसे ये पाँच दाने माँगेंगे मैं किसी भी ढेर में से पाँच दाने लेकर उन्हें दे दूँगी।" यह सोचकर उसने वे पाँच दाने एक ओर फेंक दिये और अपने काम में लग गई।
5. Ujjhika accepted the instructions saying, “ As you say, father. " Taking the grains from Dhanya Merchant's hand she left. When she was alone she thought, "There are many Palyas (one and a half quintal approx.) of rice in papa's godown. Whenever he asks these grains back I will collect five grains from any of those heaps of rice and give him back." She threw away those five grains and resumed her routine work.
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सूत्र ६. एवं भोगवइयाए वि, णवरं सा छोल्लेइ, छोल्लित्ता अणुगिलइ, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया । एवं रक्खिया वि, णवरं गेहइ, गेण्हित्ता इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था - एवं खलु ममं ताओ इमस्स मित्तनाइ चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ सद्दावेत्ता एवं वयासी - " तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थाओ जाव पडिनिज्जारज्जासि" त्ति कट्टु मम हत्थंसि पंच- सालिअक्खए दलयइ, तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेइ, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावेइ, ठावित्ता तिसंझ पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहर।
सूत्र ६. इसी प्रकार धन्य ने दूसरी पुत्र- वधू भोगवती को बुलाकर पाँच दाने चावल के दिये। उसके मन में भी वैसे ही विचार उठे पर वह दानों को फेंकने के स्थान पर उन्हें निगल गई और अपने काम में लग गई।
तीसरी पुत्र-वधू रक्षिका के मन में विचार उठा - " मेरे स्वसुर ने स्वजनों और सम्बन्धियों के सामने बुलाकर ये दाने दिये हैं और इनकी रक्षा करने को कहा है। अवश्य ही इसमें कोई महत् कारण होगा।" यह सोचकर उसने उन पाँच दानों को साफ कपड़े में बाँधा और अपने गहनों के डिब्बे में रख उस डिब्बे को बिस्तर के सिराहने रख दिया। सुबह-दोपहर-शाम वह उनकी सार-सँभाल करने लगी ।
6. Similarly Dhanya Merchant called the second daughter-in-law, Bhogvati and gave her five grains of rice. She also had almost the same thoughts as the first one. However, instead of throwing the grains she swallowed them and resumed her work.
CHAPTER-7: ROHINI JNATA
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