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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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मुंडित हो थावच्चापुत्र के पास जा वह दीक्षित हो गये। सामायिक से चौदह पूर्व तक पूरी वाचना का अध्ययन किया। इसके बाद थावच्चापुत्र ने उसके साथ दीक्षित हुए एक हजार श्रमणों को शिष्य रूप में उसे प्रदान किया।
INITIATION OF SHUK
46. Shuk Parivrajak was enlightened by these explanations provided by Thavacchaputra. He formally bowed and said, “Bhante! I want to listen to the tenets propagated by the omniscient." Thavacchaputra gave a religious discourse for his benefit (Aupapatik Sutra). Listening to and absorbing the tenets Shuk said, “Bhante! Along with my one thousand Parivrajak disciples I want to take Diksha from you.” ___Thavacchaputra replied, “Beloved of gods! Do as you please." Now Shuk Parivrajak proceeded in the north-east direction, got rid of all his belongings including his garb, and pulled out the lock of hair on the crown of his head. Bald-headed he came to Thavacchaputra and got initiated. Beginning from Samayik he studied the complete canonical text including the fourteen sublime canons. After this Thavacchaputra promoted him to be the leader of one thousand Shramans who had been initiated along with him.
सूत्र ४७. तए णं थावच्चापुत्ते सोगंधियाओ नयरीओ नीलासोयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिबुडे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहइ। दुरूहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं जाव पाओवगमणं समणुवने।
तए णं से थावच्चापुत्ते बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सहिँ भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुड़े सव्वदुक्खप्पहीणे।
सूत्र ४७. तब थावच्चापुत्र अनगार सौगंधिक नगर से निकल विभिन्न जनपदों में विचरण करने लगे। अंत में वे एक हजार साधुओं सहित पुण्डरीक (शत्रुजय) पर्वत के पास आये और धीरे-धीरे उस पर्वत पर चढ़े। वहाँ उन्होंने मेघ सम काली शिला का प्रतिलेखन कर यथाविधि पादोपगमन अनशन ग्रहण किया। अनेक वर्षों का साधु जीवन व्यतीत कर
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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