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पंचम अध्ययन शैलक
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.. 45. Shuk Parivrajak, “You are one, two, many, imperishable, immutable, permanent, or transitory (having past, present, and future)?"
Thavacchaputra, “Shuk! I am all these." Shuk, "How so, Bhante!"
Thavacchaputra, "Shuk! In context of fundamentals I am one (soul). In context of knowledge and perception I am two. In context of soulsegments I am many as well as imperishable, immutable and permanent. And in context of attitude or indulgence I am transitory (having past, present, and future) also.” शुक की प्रव्रज्या
सूत्र ४६. एत्थ णं से सुए संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“इच्छामि णं भंते ! तुब्भे अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए। धम्मकहा भाणियव्वा।"
तए णं सुए परिव्वायए थावच्चापुत्तस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वयासी"इच्छामि णं भंते ! परिव्वायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिबुडे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए।"
"अहासुहं देवाणुप्पिया !" जाव उत्तरपुरच्छिमे दिसीभागे तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ य एगंते एडेइ, एडित्ता सयमेव सिहं उप्पाडेइ, उपाडित्ता जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अन्तिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए। सामाइयमाइयाई चोहसपुव्वाइं अहिज्जइ। तए णं थावच्चापुत्ते सयस्स अणगारसहस्सं सीसत्ताए वियरइ।
सूत्र ४६. थावच्चापुत्र के इन उत्तरों से शुक परिव्राजक को प्रतिबोध प्राप्त हुआ। उसने उन्हें यथाविधि वन्दना की और कहा-"भंते ! मैं आपसे केवली प्ररूपित धर्म सुनना चाहता हूँ।" थावच्चापुत्र ने धर्मकथा कही (औपपातिक सूत्र के अनुसार)।
धर्मकथा सुन-समझकर शुक ने कहा-"भंते ! मैं एक हजार परिव्राजकों सहित आपके पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।"
थावच्चापुत्र ने कहा-“देवानुप्रिय ! जिसमें तुम्हें सुख मिले वह करो।" शुक परिव्राजक तब उत्तर पूर्व दिशा में गये, अपने वस्त्र-उपकरण त्याग दिये और अपनी शिखा उखाड़ दी।
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CHAPTER-5 : SHAILAK
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