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सूत्र ३५. तत्थ णं सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - " इच्छामि णं भंते ! धम्मं सोच्चा जाणित्तए, जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव पडिला भेमाणे विहरइ ।"
सूत्र ३५. सुदर्शन को इन बातों से प्रतिबोध प्राप्त हुआ । उसने थावच्चापुत्र को यथाविधि वन्दना करके कहा - "भन्ते ! मैं सच्चे धर्म को सुनना और जानना चाहता हूँ ।" और थावच्चापुत्र का उपदेश सुन वह श्रावक बन गया, जीव- अजीव का ज्ञाता हो गया और धर्म पालन करता हुआ जीवन बिताने लगा ।
35. This dialogue enlightened Sudarshan. He formally bowed before Thavacchaputra and submitted, "Bhante! I want to hear and understand true religion." And after listening to the preaching of Thavacchaputra and knowing the fundamentals like soul and matter, Sudarshan became a Shravak and started leading a disciplined life.
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शुक का पुनरागमन
सूत्र ३६. तए णं तस्स सुयस्स परिव्वायगस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था - एवं खलु सुदंसणेणं सोयधम्मं विष्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवन्ने । तं सेयं खलु मम सुदंसणस्स दिट्ठि वामेत्तए, पुणरवि सोयमूलए धम्म आघवित्तति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता परिव्वायगसहस्सेणं सद्धिं जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहंसि भंडनिक्खेवं करेइ, करित्ता धाउरत्तवत्थपरिहिए पविरलपरिव्वायगेणं सद्धिं संपरिवुडे परिव्वायगावसहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सोगंधियाए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव सुदंसणस्स गिहे, जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ।
सूत्र ३६. शुक परिव्राजक को इस घटना की सूचना मिली तो उसके मन में विचार उठा - " सुदर्शन ने शौचधर्म का त्यागकर विनयमूलधर्म स्वीकार कर लिया है। उसकी इस नई श्रद्धा से उसे मुक्त कर पुनः शौच-मूलक धर्म का उपदेश देना मेरे लिए हितकर होगा ।" यह विचार आने पर वह अपने एक हजार शिष्यों के समूह सहित सौगन्धिका नगरी में आकर मठ में ठहरा। फिर गेरुए वस्त्र पहने और अपने कुछ शिष्यों सहित वह मठ से निकलकर सुदर्शन के घर गया।
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RETURN OF SHUK
36. When Shuk Parivrajak came to know about this incident he thought, "Sudarshan has been converted from the cleansing based
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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