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पंचम अध्ययन : शैलक
सूत्र ७, काल के उस भाग में अरिहन्त अरिष्टनेमि वहाँ पधारे (विस्तृत वर्णन पूर्व सम) । वे दस धनुष ऊँचे थे और नील कमल, भैंस के सींग, नीली गोली और अलसी के फूल जैसी नीली कांति वाले थे। उनके साथ अठारह हजार साधु तथा चालीस हजार साध्वियाँ थीं। वे एक के बाद एक अनेक स्थानों पर विहार करते हुए द्वारका नगरी के बाहर गिरनार पर्वत के पास नन्दनवन उद्यान में सुरप्रिय यक्षायतन के निकट अशोक वृक्ष के पास पधारे। वहाँ वे संयम और तप की साधना करते हुए रहने लगे। जनसमूह मंडलीबद्ध हो उनके पास आया और उन्होंने धर्मोपदेश दिया।
ARRIVAL OF ARHAT ARISHTANEMI
7. During that period of time Arhat Arishtanemi arrived there (details as mentioned earlier). He was ten Dhanush (an ancient linear measure) tall and his complexion was blue like blue-lotus, buffalo horn, blue bead, or Alsi flower (linseed/Linum usitatissimum). He was accompanied by eighteen thousand male and forty thousand female ascetic disciples. Visiting many places one after another he arrived and stayed under an Ashoka tree near the Surpriya temple in the Nandanavan garden near Girnar mountain. He started his spiritual practices of discipline and penance. People came to him in groups and he preached to them.
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कृष्ण की उपासना
सूत्र ८. तए णं से कहे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - " खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियं गंभीरं महुरसद्दं कोमुदियं भेरिं तालेह ।”
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ जाव मत्थए अंजलिं कट्टु ‘एवं सामी ! तह' त्ति जाव पडिसुर्णेति । पडिसुणित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति। पडिणिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कोमुदिया भेरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरं महुरसद्दं भेरिं तालेंति ।
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तओ निद्ध-महुर-गंभीरपडिए णं पिव सारइए णं बलाहए णं अणुरसियं भेरीए । तए णं तीसे कोमुइयाए भेरियाए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिन्नाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तिय- चउक्क-चच्चर-कंदर-दरी- विवर-कुहर
CHAPTER-5: SHAILAK
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