________________
पंचम अध्ययन शैलक
( २३५)
Cm
ल
कृष्ण वासुदेव __ सूत्र ५. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ। से णं तत्थ समुद्दविजय-पामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसहस्साणं' पज्जुण्णपामोक्खाणं अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सट्ठीए दुइंतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एकवीसाए वीरसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पन्नाए बलवगसाहस्सीणं, रुप्पिणीपामोक्खाणं बत्तीसाए महिलासाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं, अन्नसिं च बहूणं ईसर-तलवर जाव सत्थवाहपभिईणं वेयड्ड-गिरिसायरपेरंतस्स य दाहिणड्ढभरहस्स बारवईए य नयरीए आहेवच्चं जाव पालेमाणं विहरइ।
सूत्र ५. द्वारका नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव राजा निवास करते थे। कृष्ण वासुदेव अपनी अपार समृद्धि और सामर्थ्य सहित उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत और अन्य तीन दिशाओं में लवण समुद्र पर्यन्त दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र का आधिपत्य आदि करते हुए और पालन करते हुए विचरते थे। उनके आधीन लोगों का वर्णन इस प्रकार है-समुद्रविजय आदि दस दशार, बलदेव आदि पाँच महावीर, उग्रसेन आदि सोलह हज़ार राजा, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ राजकुमार, शाम्ब आदि साठ हज़ार दुर्दान्त योद्धा, वीरसेन आदि इक्कीस हज़ार महापुरुषार्थी, महासेन आदि छप्पन हज़ार महाबली, रुक्मिणी आदि बत्तीस हज़ार रानियाँ, अनंगसेना आदि हज़ारों गणिकाएँ और अन्य अनेक श्रेष्ठी, तलवर, सार्थवाह आदि जन।
KRISHNA VASUDEV
5. The city of Dwarka was ruled by king Krishna Vasudev whose jempire extended from the Vaitadhya mountain in the north to the Lavana sea in the three remaining directions. He ruled this large land mass known as Dakshinardha Bharat ably with all his power and grandeur. The details of the people under his reign are the ten Dashar kings lead by Samudravijaya, five great warriors lead by Baldev, sixteen thousand kings lead by Ugrasen, thirty five million princes lead by Pradyumna, sixty thousand fiery warriors lead by Shamb, twenty one thousand great achievers lead by Virsen, fifty six thousand great warriors lead by Mahasen, thirty two thousand queens lead by Rukmini, thousands of courtesans lead by Anangasena and a Imultitude of merchants, traders, etc.
स
CHAPTER-5 : SHAILAK
(235)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org