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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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to their hiding place and after some time resumed their efforts. But this turtle did not push out any of its limbs and so the jackals failed to do any damage. Tired and defeated they returned into their den dejected. __सूत्र ११. तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरंगए दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं गीवं नेणेइ, नेणित्ता दिसावलोयं करेइ, करित्ता जमगसमगं चत्तारि वि पाए नीणेइ, नीणेत्ता ताए उक्किट्ठाए कुम्मगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छिता मित्त-नाइनियग-सयण-संबंध-परियणेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था।
सूत्र ११. कछुए ने बहुत देर बाद, यह जानकर कि वे सियार बहुत दूर चले गये हैं, धीरे-धीरे अपनी गर्दन निकालकर सावधानी से चारों ओर देखा। फिर चारों पैर एक साथ बाहर निकाले और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उत्कृष्टतम गति से दौड़ता-दौड़ता झील में जा उतरा और अपने स्वजनों से जा मिला।
11. After some time, when the turtle realized that the jackals had gone far away, it slowly stretched its neck out and carefully watched all around. Finding no danger lurking nearby, it at once pushed out all its four limbs, ran with all its power and the speed it could gather, entered the lake and reached its kin-folk safe. उपसंहार
सूत्र १२. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं समणो वा समणी वा आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंच य से इंदियाइं गुत्ताइं भवंति, जाव-जहा से कुम्मए गुतिदिए।
सूत्र १२. हे आयुष्मान् श्रमणो ! इसी प्रकार हमारा जो साधु-साध्वी दीक्षित होने के | बाद अपनी पाँचों इन्द्रियों को उस दूसरे कछुए के समान गोपन रखता है वह इसी भव में अनेक श्रमणों आदि द्वारा अर्चनीय आदि होता है और संसार के भव-बंधन से मुक्त हो जाता है (विस्तार पूर्व सम)। CONCLUSION
12. Long-lived Shramans ! The same way those of our ascetics who after getting initiated keep their five sense organs disciplined like the second turtle, become objects of reverence for all the ascetics in this life and finally cross the ocean of rebirth.
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA
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