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तृतीय अध्ययन : अंडे
( २०३ )
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सूत्र ५. तए णं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अन्नया कयाइं एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निसन्नाणं सन्निविट्ठाणं इमेयारवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-"जण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहिं एगयओ समेच्या णित्थरियव्वं।" ति कट्ट अन्नमन्त्रमेयारूवं संगारं पडिसुणेन्ति। पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था। __ सूत्र ५. एक बार जब दोनों एक के घर में साथ-साथ बैठे थे तो आपस में बातचीत हुई-“हे देवानुप्रिय ! हमें जो भी सुख, दुःख, विदेश-यात्रा अथवा प्रव्रज्या प्राप्त हो उस सभी में हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिये।" दोनों ने यही प्रतिज्ञा ले ली और यथावत् अपने कार्यों में लग गये।
5. One day, while they were sitting together at the residence of one of them, they discussed, “Beloved of gods ! Whatever pleasure or pain, chance of travel, or decision of renunciation we come across, we shall give each other company.” They promised each other and resumed there normal life. गणिका देवदत्ता
सूत्र ६. तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ, अड्डा जाव भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसद्विगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयार-कुसला णवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहियविलासललियसलाव-निउणजुत्तोवयारकुसला ऊसियझया सहस्सलंभा विइन्नछत्त-चामरबालवियणिया कनीरहप्पयाया यावि होत्था, बहूणं गणिया-सहस्साणं आहेवच्चं जाव विहरइ। __ सूत्र ६. चम्पा नगरी में देवदत्ता नाम की एक गणिका भी रहती थी। वह शक्ति-सम्पन्न
और समृद्ध थी, अनेकों सेवक उसके आश्रित थे। चौंसठ कलाओं की पंडित, गणिका के चौंसठ गुणों से परिपूर्ण, उनतीस प्रकार की क्रीड़ाओं की अभ्यासी, इक्कीस रति गुणों की पारंगत और बत्तीस पुरुषोपचारों (पुरुषों के साथ व्यवहार गुण) में कुशल थी वह। उसे नौ अंगों के परिपूर्ण हो जाने का भान था अर्थात् नव विकसित यौवना थी। अठारह देशी भाषाओं की विशारद थी व शृंगार का मूर्त रूप और चारु वेषधारी थी। वह संगति, गति आदि व्यवहार में कुशल थी। उसके घर पर ध्वजा फहराती थी और उसका एक दिन का शुल्क एक हजार मुद्रा था। राजा ने उसे छत्र, चामर और बाल व्यंजनक (मोर पंख से बना
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CHAPTER-3 : ANDAK
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