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द्वितीय अध्ययन : संघाट
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Some of the gods in the Saudharma dimension have a life span of four Palyopams (a superlative count of time). Dhanya too was one of them. After completing his age, form, state, and life as a god he shall be reborn as a human being in the Mahavideh area and shall attain liberation, ending all the sorrows, during the same birth. उपसंहार
सूत्र ४४. जहा णं जंबू ! धण्णेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो ति वा जाव विजयस्स तक्करस्स तओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागे कए नन्नत्थ सरीरसारक्खणट्ठाए, एवामेव जंबू ! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा जाव पव्वईए समाणे ववगयण्हाणुम्मद्दण-पुष्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालियसरीरस्स नो वण्णहेउं वा, रूवहेउं वा, विसयहेउं वा असण-पाण-खाइम-साइमं आहारमाहारेइ, नन्नत्थ णाण-दंसण-चरित्ताणं वहणयाए। से णं इह लोए चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावगाणं य साविगाण य अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कन्नच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पाडणाणि य वसणुप्पाडणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ। अणाईयं च णं अणवदग्गं दीह जाव वीइवइस्सइ; जहा से धण्णे सत्थवाहे। __सूत्र ४४. हे जम्बू ! जैसे धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को अपने भोजन में से हिस्सा देने का कार्य न तो धर्म या तप समझकर किया, न उपकार का बदला आदि समझकर किया और न ही उसे अपना मित्रादि मानकर किया। उसने यह कार्य केवल अपने शरीर की रक्षा के लिये किया। उसी प्रकार, हे जम्बू ! हमारे जो साधु-साध्वी दीक्षित होने के पश्चात् स्नान, मर्दन, पुष्प, गन्ध, माला, अलंकार आदि का परित्याग कर इस औदारिक शरीर की कांति के निमित्त अथवा विषय भोगों को भोगने के निमित्त आहार नहीं करते, अपितु ज्ञान, दर्शन और चारित्र का पालन करने के लिए करते हैं वे साधु-साध्वियों तथा श्रावक-श्राविकाओं के वन्दनीय और हर तरह से उपासनीय होते हैं। परलोक में भी वे हाथ, कान, नाक, हृदय, वृषण आदि अंगों के छेदने, उखाड़ने, ऊँचा लटकाने आदि कष्टों से पीड़ित नहीं होते। वे पुनर्जन्म के अनादि-अनन्त दीर्घ मार्ग को पार करते हैं, जैसे धन्य सार्थवाह ने किया। CONCLUSION
44. Jambu ! Dhanya merchant did not do the act of sharing of his food with Vijaya thief considering it to be a religious act or with the misconception that it was some penance. He was not inspired to do this
ख्या
CHAPTER-2 : SANGHAT
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