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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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share the food with the killer of my son considering him to be my leader, associate, or friend. I did that with no other purpose but to satisfy the needs of my body."
Bhadra was pleased and satisfied with this explanation from Dhanya merchant. She at once got up from her seat, embraced him and asked about his welbeing. After this, she went for her bath, got ready and resumed her normal marital and family life. विजय चोर की अधम गति __ सूत्र ३९. तए णं से विजयं तक्करे चारगसालाए तेहि बंधेहिं वहेहिं कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए य छुहाए य परज्झवमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। से णं तत्थ नेरइए जाए काले कालोभासे जाव वेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ।
से णं तओ उव्वट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ। __ सूत्र ३९. उधर विजय चोर बन्ध से, वध की धमकी से, कोड़ों की मार से, और भूख-प्यास से पीड़ा पाता हुआ मृत्यु के बाद नारक जीव के रूप में नरक में पैदा हुआ। वहाँ वह हर प्रकार से काला दिखाई देता था और दुःख भोग रहा था। नरक से निकलकर वह अनन्त काल तक चार गति वाले संसार का भ्रमण करेगा। END OF VIJAYA
39. In the prison Vijaya thief continued to be tormented by his shackles, threats of death, whipping and agony of hunger and thirst. In the end he died and was born as a hell being enveloped in the hellish darkness and suffering intolerable tortures. When he leaves the hell he will be caught in the unending cycles of rebirth for an indefinite period.
सूत्र ४0. एवामेव जंबू ! जे णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गन्थी वा आयरियउवज्झायाणं अन्तिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे विपुलमणिमुत्तिय-धण-कणग-रयण-सारे णं लुब्भइ से वि य एवं चेव। ___ सूत्र ४0. हे जंबू ! इसी प्रकार हमारा जो भी साधु या साध्वी गृह त्यागकर, मुंडित होकर आचार्य या उपाध्याय के पास दीक्षा लेने के बाद विपुल मणि, मोती, धन, सोना और बहुमूल्य रत्नों में लुब्ध होता है उसकी भी यही गति होती है।
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GARIA
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JNĀTA DHARMA KATHANGA SUTRA
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