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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र १५. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जातकम्मं करेन्ति, करित्ता तहेव जाव विउलं असण पाण खाइम साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता तहेव मित्तनाइ. भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति-"जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे णं तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिन्ननामेणं।"
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवड्डेन्ति।
सूत्र १५. जन्म के बाद पहले दिन माता-पिता ने बालक का जातकर्म संस्कार किया और तब एक के बाद एक ग्यारह दिन तक सभी पारम्परिक संस्कार अनुष्ठान पूरे किये। बारहवें दिन आहारादि की भरपूर तैयारी कर मित्रादि स्वजनों-परिजनों को आमंत्रित किया। भोज सम्पन्न होने के बाद गुणानुसार नाम रखने हेतु कहा-"हमारा यह पुत्र नागादि देवों की प्रतिमाओं के सम्मुख मनौती करने के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ है अतः इसका नाम देवदत्त रखा जाता है।"
फिर बालक के माता-पिता ने मनौती के संकल्प के अनुसार सभी दानादि अनुष्ठान सम्पन्न किये।
15. After the birth of the child, on the first day the parents performed the ritual ceremonies connected with the birth of a son. After that, one by one they performed all traditional ceremonies and rituals for eleven days. On the twelfth day arrangements were made for a great feast and friends and relatives were invited. When the feast concluded the formal naming ceremony was performed. Dhanya merchant said, “As we have been blessed with this son by the grace of deities like Naag, (etc.) we formally give him the name Devdutt (given by the gods)."
After this the parents indulged in other activities like charity (etc.) as they had vowed. देवदत्त का अपहरण
सूत्र १६. तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए। देवदिन्नं दारयं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहहिं डिभएहि य डिंभयाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरमइ।
BABI (176)
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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