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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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द्वारा भेजा गया भोजन लेकर जब पंथक कारागार में आया और धन्य भोजन करने लगा तो विजय ने उससे भोजन माँगा। धन्य ने उसे फटकार दिया और भोजन देने से मना कर दिया।
कुछ देर बाद धन्य को शौचादि की शंका हुई तो उसने विजय से एकान्त में चलने को कहा। विजय ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। पुनः आग्रह करने पर उसने कहा कि धन्य यदि अपने भोजन में से हिस्सा देने का वादा करे तो वह साथ चल सकता है। विवश धन्य ने वादा कर दिया और तब विजय उसे शंका मुक्त होने साथ ले गया।
दूसरे दिन जब पंथक भोजन लेकर आया तो धन्य ने अपने भोजन में से विजय को भोजन कराया। पंथक ने घर लौट भद्रा से बताया तो वह धन्य से नाराज हो गई।
कुछ दिनों बाद धन्य ने दण्ड स्वरूप राजकोष में धन दिया और कारागार से मुक्त होकर घर लौटा। सभी ने उसका स्वागत किया किन्तु उसकी पत्नी उससे रुष्ट रही। भद्रा ने जब उससे बात भी नहीं की तो उसने कारण पूछा। भद्रा ने कहा कि उसने अपने भोजन में से अपने पुत्रहन्ता को भाग दिया इस कारण वह रुष्ट थी। धन्य ने उसे समझाया कि विजय को भोजन देने के पीछे धन्य की अपनी शारीरिक आवश्यकता थी-मजबूरी, अन्य कोई कारण नहीं। भद्रा ने यह बात समझी कि शरीर की आवश्यकता हेतु आपाद् धर्म निभाना दोषपूर्ण नहीं है। कालान्तर में धन्य सार्थवाह ने दीक्षा ली और अपनी आराधना के फलस्वरूप सौधर्म देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले मोक्ष में जायेगा।
SECOND CHAPTER : SANGHAT: INTRODUCTION
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Title--Sanghade or Sanghat means tied together or joined together. This story deals with a particular situation and the duties and activities connected with it. The connection between body and soul is a natural one and no outer force can intervene. When the soul steps on the path of freedom it becomes aware of this tie. When this sense of discrimination dawns, it becomes aware of the fact that all the essential activities connected with the body are guided by the natural and imperative needs. If it discharges its duty with an indulgent attitude the soul is doomed to attract Karmas, however, if it does the same considering it to be an imperative need or with a detached attitude the soul progresses toward liberation. This important principle has been explained with the help of this interesting tale.
Gist of the Story-In Rajagriha lived a merchant named Dhanya and his wife Bhadra. Even after a long and happy married life they had no offspring. To be blessed with a child Bhadra once went to some temples outside the town to worship various deities. After some days her wish was fulfilled and Bhadra became pregnant. At the proper time she gave birth to a male child who was named Devdutt. A slave boy named Panthak was appointed to look after the child.
One day Panthak took Devdutt in his arms and went out of the house. He came to the highway, placed Devdutt carefully on one side and got absorbed in playing with other children. In the city of Rajagriha lived a greedy and cruel thief named
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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