SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात सूत्र १५२. यह तपस्या पूर्ण करके मेघ अनगार पुनः भगवान महावीर के पास गये और वन्दना करके बोले-“भगवन् ! मैं आपकी अनुमति लेकर 'गुणरत्न संवत्सर' नामक तपस्या अंगीकार करना चाहता हूँ।" भगवान ने अनुमति दे दी । RELENTLESS PRACTICES 152. After concluding this series of penances ascetic Megh again went to Shraman Bhagavan Mahavir and said after formal bowing, "Bhagavan! With your permission I wish to take vow and observe the Guna Samvatsar penance." Bhagavan granted him permission. ( १३७ ) सूत्र १५३. तए णं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडए णं । दोच्चं मासं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडए णं । तच्चं मासं अट्ठमंअट्टमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं उवाउडए णं । चउत्थं मासं दसमंदसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया. ठाणुक्कुडुए सूराभिमुह आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडए णं । पंचमं मास दुवालसमंदुवालसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडए णं । एवं खलु एए र्ण अभिलावेणं छट्टे चोदसमं चोद्दसमेणं, सत्तमे सोलसमंसोलसमेणं, अट्ठमे अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं, नवमे वीसतिमंवीसतिमेणं, दसमे बावीसइमंबावीसइमेणं, एक्कारसमं चउवीसइमंचउवीसइमेणं, बारसमे छव्वीसइमंछव्वीसइमेणं, तेरसमे अट्ठावीसइमं - अट्ठावीसइमेणं, चोद्दसमे तीसइमंतीसइमेणं, पंचदसमे बत्तीसइमंबत्तीसइमेणं, सोलसमे मासे चउत्तीसइमंचउत्तीसइमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए णं सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे राई वीरासणेण य अवाउडएण य सूत्र १५३. मेघ अनगार ने तब एक माह तक एकान्तर उपवास ( एक दिन उपवास, दूसरे दिन भोजन, तीसरे दिन फिर उपवास) से यह तपस्या आरंभ की। तपस्या काल में वे दिन में गोदोहन आसन में बैठते और सूर्य की ओर मुँह करके आतापना लेते। रात में निरावरण हो वज्रासन में बैठते । इसी दिनचर्या से दूसरे महीने बेले- बेले पारणा, तीसरे महीने तेले-तेले पारणा और चौथे महीने चौले - चौले पारणा किया। CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA Jain Education International For Private Personal Use Only (137) OREO www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy