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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र १५१. भगवान महावीर से अनुमति प्राप्त कर मेघ अनगार भिक्षु प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। यह तपस्या उन्होंने सूत्र, कल्प, मार्ग के अनुसार सम्यक् रूप से काया द्वारा ग्रहण की, उसका पालन किया, शोभित किया, शोधन किया, तथा विस्तार किया और पूर्ण करके कथन द्वारा कीर्तन किया। तपस्या सम्पन्न कर वे भगवान महावीर के पास गये
और बोले__ "भगवन् ! अब मैं आपकी अनुमति प्राप्त कर दो माह की भिक्षु प्रतिमा अंगीकार करके विचरना चाहता हूँ।" भगवान ने अनुमति दे दी। ___ मेघकुमार ने इस प्रकार बारह भिक्षु प्रतिमाओं का सम्यक् रूप से पालन किया। वे इस प्रकार हैं-पहली एक माह की, दूसरी दो की, तीसरी तीन की, चौथी चार की, पाँचवी पाँच की, छठी छह की, सातवीं सात की, आठवीं, नवीं और दसवीं सात-सात अहोरात्र की और ग्यारहवीं तथा बारहवीं एक-एक अहोरात्र की।
151. Getting permission from Shraman Bhagavan Mahavir, ascetic Megh took vow of the Bhikshu Pratima. He accepted this penance with proper rules and procedures as prescribed in the scriptures. He physically observed this penance, and supplemented the observance with desired attitude, perfected and prolonged it. Concluding the penance with verbal praise of its fruits he went to Shraman Bhagavan Mahavir and said, "Bhagavan! Now I seek your permission for observing a two month duration Bhikshu Pratima." Bhagavan granted him permission.
Continuing this way ascetic Megh properly observed twelve Bhikshu Pratimas. They are-first to seventh for durations of months matching their numbers, eighth to tenth for durations of seven days and nights each and eleventh and twelfth for durations of one day and night each.
अथक साधना
सूत्र १५२. तए णं से मेहे अणगारे बारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं काए णं फासेत्ता पालेत्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।"
"अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह।"
RAHMIRE
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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