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________________ ( १२६ ) आकुंचियथोर जालालोवियनिरुद्धधूमंधकारभीओ आयवालोयमहंत - तुंबइयपुन्नकन्नो पीवरकरो भयवस-भयंतदित्तनयणो वेगेण महामहो व्व पवणोल्लियमहल्लरूवो, जेणेव कओ ते पुरा दवग्गिभयभीयहिययेणं अवगयतणप्पएसरुक्खो रुक्खोद्देसो दवग्गिसंताणकारणट्टाए जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए । एक्को ताव एस गमो । सूत्र १३७. " समय बीतता गया और कमल - वनों का नाश करने वाला, कुंद और लोध्र के फूलों से लदा, हिम से भरा हेमन्त ऋतु भी बीत गया । ग्रीष्म ऋतु का आरम्भ हो गया । उस समय तुम वनों में विहार कर रहे थे। क्रीड़ा करते समय हथिनियाँ तुम्हारे ऊपर तरह-तरह के कमल और पुष्पों से प्रहार करती थीं । उस ऋतु के फूलों के चामर जैसे कान के आभूषणों से सजे तुम सुन्दर लगते थे। मद के कारण फूले गंड-स्थलों को गीला करने वाले और झरते मदजल से तुम गन्ध- हस्ति बन गये थे और हथिनियों से घिरे रहते थे । ऋतु संबंधी सौन्दर्य से तुम गमक उठे थे। और तब ग्रीष्मकाल के प्रखर सूर्य की किरणें पड़ने लगीं जिन्होंने वृक्षों की चोटियों को सुखा दिया । मृगार पक्षी दारुण रव करने लगे । प्रचण्ड वायु से पत्ते, तिनके, काठ आदि सारे आकाश में छा गये और वृक्षों को ढँक दिया। वेग से चक्कर लगाते भँवरों से वातावरण भयावह दिखाई देने लगा । प्यास जनित पीड़ा से सिंह आदि पशु इधर से उधर भागने लगे। ऐसे भयानक बने जंगल में प्रचण्ड हवा के थपेड़ों से दावानल की ज्वालाएँ भड़क उठीं और फैलने लगीं। उसका भीम रौरव प्रचण्ड था । वृक्षों से झरती मधुधाराओं से सिंचित होने से वह और भी भड़कने लगा और जाज्वल्यमान तथा शब्दायमान हो गया। चमचमाती चिंगारियाँ और धूम - माला से परिपूर्ण हो गया। सैंकड़ों जीवों का विनाश होने लगा। इस निरन्तर वेगवान होते दावानल से वह ग्रीष्म ऋतु अत्यन्त भयास्पद हो गई। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र " हे मेघ ! तुम उस दावानल की ज्वालाओं से घिरकर रुक गये। धुएँ से हुए अंधकार से आतंकित हो गए। आग की तपन से स्तब्ध होने से तुम्हारे तूम्बे जैसे विशाल कान स्तम्भित हो गए। तुम्हारी विशाल और पुष्ट सूँड सिकुड़ गई। तुम्हारी चमकती आँखें भय से इधर-उधर देखने लगीं। जैसे हवा के वेग से घने बादल फैल जाते हैं वैसे ही भय के आवेग से तुम्हारा आकार भी विस्तार पा गया और तुमने उस दावानल से अपनी रक्षा करने के लिए उस मंडल की ओर जाने का निश्चय किया जिसे तुमने साफ किया था और तिनकों रहित बना दिया था। Jain Education International THE CONFLAGERATION 137. “As time passed, the winter season, with its abundance of Kund and Lodhra blossoms and known as the destroyer of the lotus ( 126 ) JNĀTA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only उ www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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