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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात ( १०५ ) Oamr> OO (७) मच्छ (८) दप्पणया जाव बहवे अत्यत्थिया जाव कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किब्बिसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया बद्धमाणा पूसमाणया खंडियंगणा ताहिं इटाहिं जाव अणवरयं अभिणंदंता य एवं वयासी “जय जय णंदा ! जय जय भद्दा ! जय णंदा ! भदं ते, अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्मं, जियविग्योऽवि य वसाहि तं तेव ! सिद्धिमज्झे, निहणाहि रागद्दोसमल्ले तवेणं धिइधणियबद्धकच्छे, मदाहि य अट्ठकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो, पावय वितिमिर-मणुत्तरं केवलं नाणं, गच्छ य मोक्खं परमपयं सासयं च अयलं हंता परीसहचर्मु णं अभीओ परीसहोवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ' त्ति कटु पुणो पुणो मंगल-जयजयसदं पउंजंति। __सूत्र ११४. ये सब तैयारियाँ हो जाने के बाद पालकी के आगे सबसे पहले अनुक्रम से आठ मंगल द्रव्य चलाये गये। वे इस प्रकार हैं-१. स्वस्तिक, २. श्रीवत्स (तीर्थंकरों के वक्ष पर का एक अवयवाकार चिह्न), ३. नंदावर्त (विशेष स्वास्तिकाकार चिह्न), ४. वर्धमान (पात्र विशेष), ५. भद्रासन, ६. कलश, ७. मत्स्य, और ८. दर्पण। बहुत से याचकादि मेघकुमार का इष्टादि वचनों से अभिनन्दन करते हुए कहने लगे___“हे नन्द ! तुम्हारी जय हो, जय हो। हे भद्र ! तुम्हारी जय हो, जय हो। हे जगत् को आनन्द देने वाले ! तुम्हारा कल्याण हो। तुम अजेय इन्द्रियों को जीतो और स्वीकार किये हुए श्रमण धर्म का पालन करो। हे देव ! विघ्नों को जीतकर सिद्धि में निवास करो। धैर्यपूर्वक कमर कसकर राग-द्वेषरूपी मल्लों का तप के द्वारा नाश करो। प्रमादरहित हो आठों कर्मरूपी शत्रुओं का विशुद्ध शुक्लध्यान से मर्दन करो। अज्ञान के तिमिर से विहीन सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान को प्राप्त करो। परीषहों की सेना का नाश कर, परीषह और उपसर्गों से निश्चिन्त होकर शाश्वत एवं अचल परम पद को प्राप्त करो। तुम्हारी धर्मसाधना में कोई विघ्न न हो।" और वे बार-बार मंगलमय जय-जयकार करने लगे। ___114. After all these preparations were made, first of all eight propitious things were sent ahead of the palanquin. They are 1. Swastik (a specific graphic design resembling the mathematical sign of addition with a perpendicular line added to each of the four arms), 2. Srivatsa (a specific mark found on the chest of all Tirthankars), 3. Nandavarta (a specific graphic design resembling a Swastik but more elaborate), 4. Vardhaman (a specific design of vessel), 5. Bhadrasan (a specific design of a seat), 6. Kalash (an urn), 7. Matsya (a fish), and 8. Darpan (a mirror). साला CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA (105) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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