SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (९०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र O AARAO आप अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए अग्गिसामन्ने जाव मच्चुसामन्ने सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे, से के णं जाणइ अम्मयाओ ! के जाव गमणाए ? तं इच्छामि णं जाव पव्वइत्तए।" सूत्र ९३. इस पर मेघकुमार ने उत्तर दिया-“हे माता-पिता ! आपका कथन ठीक है किन्तु हे माता-पिता यह हिरण्यादि सभी द्रव्य अग्नि द्वारा जलाये जा सकते हैं। ये सभी चोरों द्वारा चुराये जा सकते हैं, राजा द्वारा इनका अपहरण किया जा सकता है, भागीदार बँटवारा कर सकता है और मृत्यु के आने पर इनसे बिछोह हो जाता है। अतः इस सारी समृद्धि में अग्नि, चोर आदि सभी भागीदार हैं। ये ध्रुवादि नहीं हैं (कथन का अंतिमांश पूर्व सम)। इसलिए मैं अभी ही दीक्षा लेना चाहता हूँ।" ___93. Megh Kumar replied, “Parents! What you say is correct but all these earthly things including gold can be consumed by fire. Thieves can take away this wealth, government can confiscate it, a partner can claim a share from it, and death can separate one from it. In other words, all these and many others are in fact partners in this wealth. Moreover, it is mutable (etc. as mentioned before). As such, I want to get initiated immediately.” सूत्र ९४. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएइ मेहं कुमारं बहूहिं विसयाणुलोमाहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य, आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा, सन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहि संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुन्ने णेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निजाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठीए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानदी पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं चक्कमियव्वयं गरुअं लंबेयव्वं, असिधारावयं संचरियव्वं। __सूत्र ९४. इस प्रकार जब माता-पिता सभी प्रकार के अनुकूल अनुनय-विनय, दीनता प्रदर्शन, आत्मीयता आदि से मेघकुमार को समझाने में असफल रहे तो उन्होंने प्रतिकूल उपायों से संयम के प्रति भय और उद्वेग उत्पन्न करने की चेष्टा से कहा___ “हे पुत्र ! निर्ग्रन्थ का प्रवचन सत्य है, अनुपम है, केवली द्वारा प्रतिपादित है, न्याययुक्त है, विशुद्ध है, शल्यनाशक है (मायादि), सिद्धि और मुक्ति का मार्ग है, स्वर्ग और निर्वाण oporo RABITA 1 (90) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy