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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
( ८९)
SHAYARI
तसे के णं अम्मयाओ ! जाणंति के पुव्विं गमणाए ? के पच्छा गमणाए ! तं इच्छामि णं
अम्मयाओ ! जाव पव्वइत्तए।" __ सूत्र ९१. इस पर मेघकुमार ने कहा-“हे माता-पिता ! आपका कथन उचित है किन्तु काम भोग के आधार ये शरीर अशुद्ध हैं, अशाश्वत हैं। इनमें से वमन, पित्त, कफ, शुक्र
और रक्त झरता है। ये अशुद्ध श्वास-निश्वास, मल-मूत्र और पीप के भण्डार हैं और इनमें से इन्हीं सब कुत्सित वस्तुओं की उत्पत्ति होती रहती है। ये ध्रुवादि नहीं हैं (कथन का अंतिमांश पूर्व सम)। अतः हे माता-पिता मैं अभी दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। ___91. Megh Kumar replied, “Parents! What you say is right but the body that is the source of these physical pleasures is impure and transient. It discharges vomit, bile, phlegm, semen, and blood. It is filled with as well as produces impure things like foul air, excreta, and pus. It is mutable (etc.). As such, I want to get initiated now only.”
सूत्र ९२. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-“इमे ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरन्ने य सुवन्नेय कंसे य दूसे य मणिमोत्तिए य संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावतिज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं, पगामं भोत्तुं, पगामं परिभाएउं, तं अणुहोहि ताव जाव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं, तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पव्वइस्ससि।
सूत्र ९२. माता-पिता ने पुनः मेघकुमार से कहा-“हे पुत्र ! तुम्हारे पितामह, पिता के पितामह और उनके प्रपितामह के समय से आयी प्रचुर समृद्धि-हिरण्यादि (पूर्व सम) विद्यमान है। यह इतना है कि सात पीढ़ियों तक भी समाप्त न हो। तुम इसका खूब दान करो, स्वयं भी भोग करो और बाँटो भी। हे पुत्र ! मनुष्योचित जितना ऋद्धि-सत्कार का भण्डार है तुम उसका भोग करो। उसके बाद दीक्षा ले लेना।"
92. The parents persisted, "There is abundant wealth (gold, etc. as detailed earlier) inherited from your ancestors. It is enough to last seven generation and more. You should donate, enjoy, and distribute out of it as much as it pleases you. Enjoy this great treasure of wealth and good will and then get initiated.” _सूत्र ९३. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी-“तहेव णं अम्मयाओ ! जं णं तं वदह-इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पव्वइस्ससि एवं खलु अम्मयाओ ! हिरन्ने य सुवण्णे य जाव सावतेज्जे
AAHIRNO
पटक
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ABDMRO
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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