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सूत्र ८३. तब मेघकुमार ने भगवान महावीर को फिर वन्दनादि की और रथ में बैठकर वापस लौटे। रथ से उतर वे अपने माता-पिता के पास गये और उनके चरणों में प्रणाम कर के बोले, “हे माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर की देशना सुनी और मेरे मन में उनके धर्म मार्ग की इच्छा जागी और बलवती हो गई है। वह मुझे रुचा है । "
83. Megh Kumar once again bowed before Shraman Bhagavan Mahavir and returned to the palace in his chariot. He went straight to his parents and after due courtesy said, "Father and mother! I have been to the discourse of Shraman Bhagavan Mahavir. It has inspired me strongly to accept the path shown by him. I have developed an affinity for it.”
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सूत्र ८४. तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयासी - " धन्नो सि तुमं जाया ! संपुन्नो सि तुमं जाया ! कयत्थो सि तुमं जाया ! जं णं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए।"
. सूत्र ८४. माता-पिता ने कहा, " हे पुत्र ! तुम धन्य हो ! तुम पुण्यवान और कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण भगवान महावीर की देशना सुनी और वह तुम्हें अभीष्ट लगी।”
84. The parents replied, "Son! You are to be commended. You are lucky and blessed that you have heard the sermons from Shraman Bhagavan Mahavir and found the same inspiring."
सूत्र ८५. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी - " एवं खलु अम्मयाओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते। से वियणं मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए । तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं, पव्वइत्तए ।
सूत्र ८५. तब मेघकुमार ने आग्रहपूर्वक निवेदन किया - " हे माता-पिता ! मुझे भगवान का धर्म-मार्ग इष्ट लगा है अतः मैं आपकी आज्ञा प्राप्त कर भगवान महावीर के पास जा, मुंडन करवाकर, गृह त्याग कर, प्रव्रज्या ले अनगार बनना चाहता हूँ ।"
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85. Megh Kumar requested persuasively, “Father and mother! I find the path shown by Bhagavan to be beneficial and as such, I wish to seek your permission, go to Shraman Bhagavan Mahavir and get initiated into his ascetic order after renouncing the worldly life and getting my head shaved."
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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