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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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accept anything with any trace of life, 2. only to accept a thing without any trace of life, 3. to wear a joint-less upper garment, 4. to join palms the moment the lord is seen and 5. to focus thoughts over him.
When he reached near Shraman Bhagavan Mahavir, Megh Kumar circum-ambulated him three times in anti-clockwise direction and then bowed in reverence. Megh Kumar took an appropriate seat in front of Bhagavan and joining both palms started worshiping him with a desire to listen to his preaching.
सूत्र ८१. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहकुमारस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ, जहा जीवा बझंति, मुच्चंति, जहा य संकिलिस्संति। धम्मकहा भाणियव्वा, जाव परिसा पडिगया। __ सूत्र ८१. श्रमण भगवान महावीर ने मेघकुमार सहित उस धर्म सभा के बीच बैठकर अद्भुत (श्रेष्ठ) श्रुतधर्म और चारित्र धर्म का उद्बोधन दिया। उन्होंने बताया कि कैसे जीव कर्मों का बंधन करता है, कैसे उनके प्रभाव से कष्ट पाता है, और कैसे मुक्त होता है (औपपातिक सूत्र अनुसार)। भगवान की देशना सुनकर जन-समूह वापस लौट गया।
81. Shraman Bhagavan Mahavir gave his revolutionary discourse on the word of the omniscient and the codes of conduct. He explained how a being fuses karmas to his soul, how it suffers under the influence of these karmas, and how it gets liberated (Aupapatik Sutra). The assembled people left after the discourse. वैराग्य जागरण
सूत्र ८२. तए णं मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुढे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“सद्दहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, एव पत्तयामि णं, रोएमि णं, अब्भुट्टेमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेय भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेय भंते ! से जहेव तं तुब्भे वदह। जं नवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तओ पच्छा मुंडे भवित्ता णं पव्वइस्सामि।"
“अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह।"
सूत्र ८२. भगवान की देशना सुनकर मेघकुमार प्रसन्न हुए और दाहिनी ओर से | आरंभ कर भगवान की तीन बार प्रदक्षिणा की, वन्दना व नमस्कार किया। फिर वह बोले,
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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