________________
प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
(७५)
S
71. When Megh Kumar's parents realized that he had matured in every respect, they got eight beautiful houses constructed for him. These buildings were tall and eye catching. Gem and gold inlaid frescoes decorated their walls. A series of canopies and fluttering flags made their sky-high roofs very attractive. The gem stones embellishing the overhangs and grills appeared like eyes. Gem studded and golden domes, with different types of lotus flowers painted over them, were aesthetically placed at various points. Diamond shaped and half-moon shaped arches and the supporting pillars with colourful palm impressions enhanced the beauty of these buildings. Decorated with a variety of bead strings, both the surfaces of the walls were shining and smooth. Glowing golden sand covered the floor of the courtyards. Pleasing to touch and look at, these buildings appeared alluring and attractive.
सूत्र ७२. एगं च णं महं भवणं कारेंति-अणेगखंभसयसनिविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियागं अब्भुग्गय-सुकय-वइरवेइया-तोरण-वररइय-सालभंजिया-सुसिलिट्ठ-विसिट्टलट्ठ-संठित-पसत्थ-वेरुलिय-खंभ-नाणामणि-कणग-रयणखचितउज्जलं बहुसम-सुविभत्तनिचिय-रमणिज्ज-भूमिभागं ईहा-मिय. जाव भत्तिचित्तं खंभुग्गय-वइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजुत्तं पिव अच्ची-सहस्स-मालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचण-रयणथूभियागं नाणाविहपंचवन्नघंटा-पडाग-परिमंडियग्गसिरं धवलमरीचिकवयं विणिम्मयंतं लाउल्लोइयमहियं जाव गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं।
सूत्र ७२. इन भवनों के अतिरिक्त एक विशाल भवन मेघकुमार के लिए भी बनवाया गया। वह अनेक खंभों पर बना हुआ था। जिन पर क्रीड़ा करती पुतलियाँ बनी हुई थीं। उस भवन में ऊँची और सुनिर्मित हीरे जड़ी वेदिका बनी थी। द्वार पर तोरण थे और विशाल व उन्नत वैडूर्य के स्तम्भ थे जिन पर पुतलियाँ बनी थीं और जो सोने, रत्न और मणियों से जड़े होने के कारण चमक रहे थे। इन स्तम्भों का आकार समतल, विशाल, सुदृढ़ और सुन्दर था। इन पर जगह-जगह ईहामृगादि (पूर्व सम) के मनोहारी चित्र बने हुए थे। हीरे की बिंदियों से जड़े होने के कारण ये नयनाभिराम लग रहे थे। ऐसा लगता था मानो समान स्तर पर रहे दो विद्याधर (युगल) यंत्र से चल रहे हों। यह भवन हजारों किरणों और चित्रों से सजा होने से जगमगा रहा था। उसे देख दर्शकों की आँखें एकटक निहारने लगती थीं। उसका स्पर्श सुखद और रूप चित्ताकर्षक था। सुवर्णादि से जड़े स्तूप वाले उस भवन के
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
(75)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org