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________________ OnOM (७४) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र @ARMA SODEOS सूत्र ७0. तए णं मेहे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगार-देसीभासा-विसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोगसमत्थे-साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था। सूत्र ७0. मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गया, उसके नौ अंग जाग्रत (पूर्ण विकसित) हो गये। वह अट्ठारह प्रकार की देशी भाषाओं का विद्वान् हो गया। गायन-नृत्य-नाट्य आदि में कुशल हो गया। सब प्रकार के युद्ध में प्रवीण हो गया, बाहुबली और समस्त भोग भोगने में समर्थ हो गया। साहसी और विकालचारी (रात में भी अकेला निर्भय घूमने में सक्षम) हो गया। 70. Megh Kumar became proficient in all the seventy two arts. Every part of his body became fully developed. He was now a scholar of all the eighteen indigenous languages; a proficient exponent of music, dance, and drama; a strong warrior; and a skilled commander. He had attained the desired maturity to enjoy all the pleasures of life. Above all, he had turned into a courageous and fearless mover. सूत्र ७१. तए णं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरिकलापंडितं जाव वियालचारी जायं पासंति। पासित्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेन्ति अब्भुग्गयमूसियपहसिए विव मणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ते, वाउद्धृतविजयवेजयंती-पडागाछत्ताइच्छत्तकलिए, तुंगे, गगणतलमभिलंघमाण-सिहरे, जालंतररयण-पंजरुम्मिल्लियव्व मणिकणगथूभियाए, वियसियसयपत्तपुंडरीए, तिलयरयणद्ध-चंदच्चिए नाणामणिमयदामालंकिए, अंतो बहिं च सण्हे तवणिज्जरुइरवालुयापत्थरे, सुहफासे सस्सिरीयस्वे पासाईए जाव पडिरूवे। सूत्र ७१. मेघकुमार के माता-पिता ने जब यह देखा-जाना कि वह उक्त प्रकार से सर्व-गुण-सम्पन्न हो गया है तो उन्होंने आठ श्रेष्ठ प्रासाद-भवन बनवाए। ये भवन बहुत ऊँचे थे और उज्ज्वल आभा से दैदीप्यमान थे। उन पर मणि, सुवर्ण और रत्नमय भित्ति चित्र शोभित थे। उनके गगनचुम्बी शिखरों पर छत्रों की श्रेणियाँ थीं और वैजयन्ती पताकाएँ हवा से फहरा रही थीं। उनके जाली झरोखों के बीच जड़े रत्न नेत्रों जैसे लग रहे थे। स्थान-स्थान पर सोने के मणिमय स्तूप थे और उन पर चित्रित शतपत्र और पुण्डरीक कमल खिल रहे थे। तिलकाकार तथा अर्द्धचन्द्राकार सोपान तथा चन्दन के आलेख (हाथ के छापे) उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। अनेक प्रकार की मणिमालाओं से सजे वे भवन भीतर-बाहर से चिकने थे। उनके आँगन में सुनहरी रुचिर बालू बिछी थी। सुखद स्पर्श और शोभन रूप वाले वे भवन अत्यन्त आह्लादकारी और मनोहर थे। OMer (74) JNĀTĀ DHARMA KATHÂNGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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