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indulge in any of the above said activities. That is why these are classified as improper conduct.
शुद्ध आचार पालन का फल
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पाँच आस्रवों के ज्ञाता व उनका निरोध करने वाले, तीनों गुप्तियों से गुप्त, छः प्रकार के जीवों के प्रति संयत, पांचों इन्द्रियों का निग्रह करने वाले धीर निर्ग्रन्थ ऋजुदर्शी संयम में स्थिर होते हैं ॥ ११ ॥
११ : पंचासवपरिण्णाया तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धीरा निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥
BENEFITS OF PROPER CONDUCT
11. Those serene Nirgranths who know and stop the five passages of inflow of karmas, who have accomplished the three-way restraints, who are careful of six types of beings, and who have full control over five senses are the ones who become firm and forthright in discipline.
विशेषार्थ :
श्लोक ११. पाँच आनव-(१) मिथ्यादृष्टि, (२) अत्याग, (३) प्रमाद, (४) कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ), और (५) अशुभ योग (हिंसा, असत्य, अदत्त ग्रहण, मैथुन और परिग्रह ) |
ELABORATION:
(11) Five Ashravs-1. falsehood, 2. attachment, 3. illusion, 4. passions (anger, conceit, deceit, greed.), and 5. evil activities (violence, telling lies, grabbing, sex and hoarding ).
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सुसमाहित ( समाधियुक्त ) अथवा ज्ञान साधनारत संयत पुरुष गर्मी में आतापना लेते हैं, हेमन्त ऋतु में निरावृत (वस्त्ररहित) रहते हैं, तथा वर्षा ऋतु में अंगोपांग समेट व आवागमन सीमित कर रहते हैं ॥ १२ ॥
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
१२ : आयावयंति गिम्हेसु हेमंतेसु अवाउडा ।
वासासु पडिलीणा संजया सुसमाहिया ॥
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