________________
卐�
SAN
४६. धूम-नेत्र-धूम्रपान अथवा वस्त्र आदि को धूप देना, ४७. वमन - वमन करना, ४८. वस्ति कर्म - अपान मार्ग से तेल, औषधि आदि चढ़ाना, ४९. विरेचन - मल त्याग हेतु औषधि लेना, ५० अंजन - काजल आंजना, ५१. दंतवण-मंजन करना, ५२. गात्राभ्यंगा - मालिश करना, ५३. विभूषण - शरीर को अलंकृत करना ॥ ९ ॥
47.
Vaman-emesis,
9. 46. Dhoom-netra-smoking; fumigating clothes, 48. Vasti karma-enema. 49. Virechana-purgation, 50. Anjan-medication of the eye, 51. Dantavan-cleaning teeth, 52. Gatrabhyangamassage, 53. Vibhushan-beautifying the body.
विशेषार्थ :
श्लोक ९. धूवणेत्ति - धूमनेत्र (धूम्रपान ) आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने प्राचीन आगमिक सन्दर्भ एवं टीका आदि के आधार पर इसके दो अर्थ मान्य किये हैं - (क) शरीर शोभा के लिए धूप सेकना व वस्त्रों को धूप देना, तथा (ख) धूम्रपान हुक्का, बीड़ी आदि पीना ।
ELABORATION:
(9) Dhoovanette-Acharyashri Atmaram ji M. has given two interpretations of this term on the basis of scriptures and later commenatries-(a) the use of perfumes on the body and fumigating clothes in order to enhance physical charm, and (b) smoking cigarette, pipe, etc.
१० : सव्वमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ।
संजमंमि य जुत्ताणं लहुभूयविहारिणं ॥
जो निर्ग्रन्थ महर्षि संयम में यतनाशील है तथा पवन के समान (लघुभूत) मुक्त विहारी हैं उनके लिए यह सभी (उपरोक्त ) आचरण योग्य नहीं है। अतः इन्हें अनाचार कहा गया है ॥१०॥
10. Those accomplished ascetics who are steadfast in their discipline and who move freely like wind are not supposed to तृतीय अध्ययन : क्षुल्लकाचार कथा Third Chapter : Khuddayayar Kaha
३९
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org