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५ : सिज्जायरपिंडं च आसंदीपलियंकए।
गिहतरनिसिज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य॥ २४. शय्यातर पिण्ड-जिस भवन में रात्रि विश्राम करे उस भवन स्वामी के AS घर से भिक्षा लेना, २५. आसंदी-चौकी, पाटा, मोढा आदि बैठने के उपकरण का
उपयोग करना, २६. पर्यंक-पलँग, खाट आदि का उपयोग करना, २७. गृहान्तर a निषिद्या-भिक्षा लेते समय गृहस्थ के घर के भीतर बैठना, २८. गात्र उद्वर्तनशरीर पर उबटन करना॥५॥
5. 24. Shayyatar pind—to take food from a house that provides facilities for staying overnight, 25. Asandi-the use of furniture for sitting, 26. Paryank-the use of furniture for sleeping, 27. Grihantar nishaddya--to sit inside a house while collecting alms, 28 Gaat udvartan-to rub one's body with some paste for cosmetic purposes. विशेषार्थ :
श्लोक ५. शय्यातर-यह बड़ा गौरवपूर्ण शब्द है। श्रमण को ठहरने के लिए आवास आदि देना शय्यादान है, शय्यादान करके भव-समुद्र तैरने वाला शय्यातर कहलाता है। श्रमण रात में जिस उपाश्रय में ठहरे, चरम आवश्यक करे, उसका स्वामी शय्यातर कहलाता है। (निशीथभाष्य गाथा ११४८, देखें दशवै. युवा. म., पृ. ७४) ___गृहान्तर निषद्या-भिक्षा लेते समय गृहस्थ के घर बीच बैठना। इस सम्बन्ध में टीका एवं 10 चूर्णि में काफी विस्तृत चर्चा है (देखें युवाचार्य महाप्रज्ञ दशवै.)
ELABORATION: __(5) Shayyatar-This is a glorifying term for a householder. To provide facilities for sleeping to a monk is called bed donation or shayyadaan. One who helps himself to cross the ocean of life by this act is called shayyatar. The owner of the house used by an ascetic for performing essential duties and sleeping is called shayyatar. (Nisheeth Bhashya, verse 1148; Dashavaikalik by Acharya Mahaprajna, page 74)
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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