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AIITRA
तइयं अज्झयणं : खुड्डयायार कहा तृतीय अध्ययन : क्षुल्लकाचार कथा THIRD CHAPTER : KHUDDAYAYAR KAHA
CONDENSED CODES
१ : संजमे सुट्टिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं।
तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं॥ जो संयम में अच्छी प्रकार स्थिर हैं, बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त हैं, षट्काय जीवों के रक्षक (त्राता) हैं उन महर्षि निर्ग्रन्थों के लिए जो आचार योग्य नहीं हैं ऐसे ये आगे कहे जाने वाले अनाचीर्ण हैं॥१॥
1. The following are the prohibitions for those great ascetics who are steadfast in their discipline, free of any physical or mental attachments, and the saviors of all beings. विशेषार्थ :
श्लोक १. सुस्थितात्मा-जिनकी आत्मा संयमाचरण में भली प्रकार स्थिर है। विप्रमुक्त-जो बाह्य (स्त्री, धन आदि) एवं आभ्यन्तर (मान, माया, लोभ आदि) परिग्रह से सर्वथा दूर है। त्राता-रक्षक। त्राता शब्द से अनेक अर्थ व्यक्त होते हैं, जैसे-दुराचार से अपनी आत्मा की रक्षा करने वाला स्व-रक्षक, सदुपदेश देकर दूसरे जीवों को दुर्गति से बचाने वाला पर-रक्षक, सब जीवों के प्रति करुणाभाव रखते हुए उनकी दया पालने वाला स्व-पर-रक्षक। निर्ग्रन्थ-राग-द्वेष की गाँठे अथवा परिग्रहरूप ग्रन्थि से जो मुक्त है। महर्षि-महान् ऋषि, अथवा महेसी-मोक्ष की इच्छा रखने वाला-चे पाँचों विशेषण मुनि के विविध चारित्रिक गुणों को सूचित करने वाले हैं।
ELABORATION:
(1) Sutthiappanam-meticulously firm
in his discipline.
तृतीय अध्ययन : क्षुल्लकाचार कथा Third Chapter : Khuddayayar Kaha
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