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११ : एवं करेंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा। विणियटृति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो॥
त्ति बेमि। बुद्धिमान् (सम्यग्दृष्टि), पण्डित (सम्यग्ज्ञानी), तथा पापमुक्त (सम्यक् चारित्रवान) पुरुष ऐसा ही करते हैं। वे भोगों से उसी प्रकार निवृत्त हो जाते हैं जैसे पुरुषोत्तम (रथनेमि) हो गये।
ऐसा मैं कहता हूँ॥११॥
11. The sagacious, scholarly, and pious men act thus. They rise above indulgences just as the great man (Rathnemi) did. . . . . . So I say. विशेषार्थ : ___ श्लोक ११. पुरुषोत्तम-आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज ने अपनी टीका में प्रश्न उठाया है कि मुनि रथनेमि तो विषयों के प्रति आकृष्ट होकर विचलित हो गये, फिर उन्हें पुरुषोत्तम क्यों कहा गया। इसका समाधान दिया है-मोहोदयवश उनके विचार डगमगाये जरूर, परन्तु राजीमती सती के शिक्षा वचनों से वे पुनः संयम में स्थिर हो गये और दृढ़ मन से चारित्र-पालन कर मोक्ष में गये। इस धीरता के कारण उन्हें पुरुषोत्तम कहा गया है। मोहोदयवश विचलित होकर जो विवेकोदय होने पर पुनः सँभलकर संयम में स्थिर हो जाता है, उसे महान् माना जाता है।
ELABORATION:
(11) Purisottamo-great man. The doubt about how Rathnemi could be called a great man when he got attracted towards a female body and was filled with lust has been resolved by Acharyashri Atmaram ji M.-Because of the rise of feeling of desire he wavered, but after hearing the sermon of Rajimati he regained his composure. He then led a disciplined life and attained liberation. Due to this inner strength he was called a great man. Those who re-establish themselves in the disciplined way after circumstantially losing their composure are believed to be great.
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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