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________________ वर्ष पुरानी अर्धमागधी भाषा को मूल पाठ रूप में रखते हुए आज की हिन्दी और अंग्रेजी में उसका सरल अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाये ताकि लोग उसे पढ़ें, समझें और साथ ही उस प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को चित्रों के द्वारा जीवन्त देखकर उसे समझने/समझाने में रुचि लेवें। ___ हमें विश्वास हुआ है कि हमारा यह प्रयोग सफल हो रहा है और आनन्द हो रहा है कि धीरे-धीरे हम अधिक सफल होंगे। सचित्र आगम काफी कीमती होते हुए भी विदेशों से तथा देश के अनेक भागों से सभी आम्नाय के पाठकों की तरफ से इनकी माँग आती रहती है। कीमती पुस्तक खरीदकर पढ़ने का अर्थ ही है उस विषय में पढ़ने वाले की रुचि है। जहाँ रुचि है, जिज्ञासा है, वहाँ कार्य सिद्धि भी है। इसलिए हम आशान्वित हैं कि हमारा शास्त्र-प्रकाशन प्रयोजन धीरे-धीरे सार्थक बनेगा और इसका पाठक वर्ग तैयार होगा। उप प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज ने पहले प्रश्नव्याकरण सूत्र (दो भाग) सूत्रकृतांग सूत्र (दो भाग) तथा भगवतीसूत्र (चार भाग) हिन्दी विवेचन के साथ तैयार किये थे जिनका प्रकाशन हुआ। अब आपश्री ने सचित्र आगम प्रकाशन की योजना का शुभारम्भ किया तो इस श्रृंखला में उत्तराध्ययन सूत्र (अब दूसरा संस्करण छप रहा है) अन्तकृद्दशासूत्र, कल्पसूत्र, ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, (दो भाग) तथा तीर्थंकर चरित्र प्रकाशित हो चुके हैं और साधु-साध्वियों के अतिरिक्त पुस्तकालयों व देश-विदेश के आगम जिज्ञासु विद्वानों के पास पहुंच रहे हैं। ___ इसी पवित्र परम्परा में अब दशैवकालिक सूत्र पाठकों के हाथों में है। विश्वास है यह भी पिछले आगमों से कुछ अधिक ही लोकप्रिय होगा। क्योंकि इस आगम की कुछ खास विशेषताएँ भी हैं, जिन पर पूज्य गुरुदेव श्री अमरमुनि जी ने अपनी प्रस्तावना में प्रकाश डाला है। इस प्रकाशन में उपप्रवर्तक श्री जी के दिशा निर्देशानुसार प्रसिद्ध विद्वान् श्रीचन्द सुराना ने पूर्ण मनोयोगपूर्वक इसका सम्पादन व चित्रांकन तैयार करवाया है। श्री सुरेन्द्र जी बोथरा ने अंग्रेजी अनुवाद तथा सरदार पुरुषोत्तमसिंह जी एवं सरदार हरविंदरसिंह जी ने चित्र तैयार किये हैं। हम उनके सहयोग के प्रति कृतज्ञ हैं। __इसके प्रूफ संशोधन में श्री राजकुमार जी जैन आई. ए. एस. (सेवा निवृत्त) मधुवन देहली ने बड़ी एकाग्रता व गुरुभक्ति की भावना से निःस्वार्थ सहयोग प्रदान किया है। आपकी सेवाओं का हम आदर करते हैं। ___ इस प्रकाशन में गुरुदेवश्री के अनेक श्रद्धालु भक्तों ने तथा पूज्य महासती तपाचार्या श्री मोहनमाला जी म. एवं श्रमणीसूर्या उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री सरिता जी म. की प्रेरणा से जिन सज्जनों ने शास्त्र-सेवा का पुण्य अर्जन किया है हम उन सबके सहयोग के प्रति कृतज्ञ हैं। महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष पद्म प्रकाशन ( 會圖令窗资题的。 圓形 suuuuunil ST Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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