________________
बৰৱब्र
SAKYSSE
पेय पीया और फिर मदनफल मुँह में लेकर उल्टी कर दी और रथनेमि से पूछा - "क्या तुम इस वमन को पीना चाहोगे ?"
44
रथनेमि बोले- वमन किया हुआ मैं कैसे पीऊँ ?"
राजीमती -- यदि वमन नहीं पीना चाहते तो फिर मैं भी अरिष्टनेमि स्वामी द्वारा वमन की हुई हूँ ? मुझे क्यों चाहते हो ?"
राजीमती के वचन से रथनेमि के विवेक चक्षु खुल गये । राजीमती प्रव्रजित हुई । रथनेमि भी प्रव्रजित हो गये ।
एक बार रथनेमि भगवान अरिष्टनेमि को वन्दन करने रैवतगिरि पर जा रहे थे। रास्ते में वर्षा हुई तो वे एक गुफा में ठहरकर ध्यान करने लग गये। इधर राजीमती भी भगवान की वन्दना कर वापस लौट रही थी । वर्षा से भींगकर वह भी उसी गुफा में प्रविष्ट हो गई और अपने गीले वस्त्र सुखाने लगी। उसी समय आकाश में बिजली चमकी तो उसके झिलमिल प्रकाश में मुनि रथनेमि साध्वी राजीमती के खुले अंग-प्रत्यंग देखकर काम-विह्वल हो गये और राजीमती के पास आकर भोग-याचना करने लगे। चंचल चित्त श्रमण रथनेमि को साध्वी राजीमती ने प्रखर वचनों से जब उपदेश दिया तो रथनेमि पुनः अपने संयम में स्थिर हो गये।
राजमती द्वारा रथनेमि श्रमण को दिया गया वह उपदेश - धृति / स्थिरता का सन्देश और वही इस अध्ययन की पृष्ठभूमि है। चूर्णिकार अगस्त्यसिंह तथा टीकाकार हरिभद्रसूरि के मतानुसार इस अध्ययन का ७, ८ और ९वाँ श्लोक राजीमती का कथन है। इसी प्रसंग पर चूर्णिकार ने राजीमती की उक्त घटना का उल्लेख कर इसका पूर्वापर सम्बन्ध जोड़ा है। यों यह ११ गाथाओं का सम्पूर्ण अध्ययन इसी तथ्य को व्यक्त करता है। उत्तराध्ययनसूत्र के २२ वें अध्ययन के ५ श्लोक ( ४२ से ४८ ) भी इसी अध्ययन के श्लोक ७ से ११ तक अक्षरश: मिलते हैं।
द्वितीय अध्ययन : श्रामण्यपूर्विका Second Chapter : Samanna Puvviya
Jain Education International
卐 圖
For Private Personal Use Only
१३
120
www.jainelibrary.org