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Guruwal
[द्वितीय अध्ययन : श्रामण्यपूर्विका
प्राथमिक संयम में पुरुषार्थ रूप श्रम करना श्रमण की पहचान है। श्रमण का भाव (सार) है श्रामण्य-(श्रमणत्व)।
इस अध्ययन का नाम है श्रामण्यपूर्विका। अर्थात् श्रमण होने से पूर्व की आधारभूमि। जैसे वृक्ष की आधारभूमि है बीज एवं भूमि। दही, नवनीत आदि की आधारभूमि है दूध। भवन की आधारभूमि है नींव। इसी प्रकार पूछा गया है कि श्रामण्य की आधारभूमि क्या है ? अर्थात् वह कौन-सी बात है जिसके बिना श्रमणत्व नहीं टिकता। इसी प्रश्न का उत्तर हैश्रामण्यपूर्विका अध्ययन। पहले अध्ययन में धर्म का वर्णन है और श्रमण का भी। प्रश्न होता है-धर्म व श्रमणत्व की आधारभूमि क्या है ? इसका उत्तर है-धृति ! धैर्य ! कहा गया है
जस्स धिई तस्स तवो जस्स तवो तस्स सुग्गई सुलभा। जिसकी धृति होती है, उसके तप होता है। जो तप करता है उसको सुगति सुलभ हो । सकती है।
इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है-श्रामण्यरूपी भवन की नींव (आधारभूमि) धृति बताकर उसके लिए मनोभूमि तैयार करना। धृतिवान आत्मा स्थिर होता है। काम-राग का निवारण वही कर सकेगा जिसमें स्थिरता, धीरता होगी। वही अपने श्रमणत्व की रक्षा कर पायेगा। अतः श्रमणत्व की रक्षा के लिए काम एवं मोह पर विजय पाना आवश्यक है।
राजीमती की एक प्राचीन घटना के परिप्रेक्ष्य में इस अध्ययन में काम-राग निवारण के लिए बड़ी सजीव और हृदयस्पर्शी प्रेरणा दी गई है। राजीमती रथनेमि का वह सन्दर्भ संक्षिप्त रूप में इस प्रकार है___ भगवान अरिष्टनेमि के दीक्षा लेने के पश्चात् उनके भाई रथनेमि, अरिष्टनेमि द्वारा परित्यक्ता राजीमती के प्रति अनुरक्त हो गये। राजीमती संसार के काम-भोगों से उदासीन हो संयम-साधना के लिए तैयारी कर रही थी। तभी कुमार रथनेमि ने राजीमती को प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। एक बार रथनेमि को समझाने के लिए राजीमती ने कोई मधुर
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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