________________
ale
AN/
10
O
TITUTHI
MAHITIJINI
>
बँधकर न रहना एवं किसी का आश्रित होकर न रहना) तथा किसी को कष्ट व हानि न पहुँचाने की वृत्ति यहाँ प्रतीक है। उसकी चार विशेषताएँ प्रसिद्ध हैं
१. मधुकर जीवन निर्वाह के लिए किसी का हनन नहीं करता। २. मधुकर फूलों से सहज निष्पन्न रस ग्रहण कर लेता है। ३. मधुकर अनेक फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस ग्रहण कर अपनी उदरपूर्ति कर लेता है। ४. मधुकर जितना आवश्यक होता है, मात्र उतना ही रस ग्रहण करता है। दूसरे समय
के लिए कुछ संग्रह नहीं करता । साधक श्रमण भी उक्त आदर्शों के अनुसार जीवनचर्या करता है इसलिए उसकी वृत्ति को माधुकरी वृत्ति कहा गया है।
इस अध्ययन में माधुकरी वृत्ति द्वारा जीवन निर्वाह करने का वर्णन करते हुए श्रमण की कुछ विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला गया है। अध्ययन का शीर्षक है-द्रुमपुष्पिका। द्रुम अर्थात् वृक्ष और पुष्प अर्थात् फूल। वृक्ष के पुष्प को माध्यम बनाकर श्रमण को अहिंसा-संयम-तपमय धर्म की आराधना करने का उपदेश दिया गया है।
आचार्य भद्रबाहु ने कहा है-धर्म का आधार है धार्मिक। इसलिए इस अध्ययन में धर्म की प्रशंसा-पढमे धम्म पसंसा (गाथा २०) के द्वारा धार्मिक की भी प्रशंसा की गई है।
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
HaniDDHA
Sairam
PN
ciniLLIER
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org