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शैली व संपादन की विद्वत्ता प्रदर्शित करने वाली अटपटी शैली से मैं सहमत नहीं हूँ, किन्तु उन्होंने प्राचीन व वर्तमान साहित्य का अनुसंधान कर जो ज्ञानवर्द्धक व आगम-हार्द को उद्घाटित करने वाले तथ्य संकलित किये हैं वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व प्रशंसनीय हैं।
मैंने अपने संपादन में इन दोनों संस्करणों को सन्मुख रखा है और इनसे जहाँ-जहाँ जो भाव या शब्द, सन्दर्भ या विवेचन ग्रहण किया है वहाँ उसका उल्लेख भी किया है, और प्रमादवश कहीं रह भी गया हो तो मैं उक्त आगम विद्वद् मनीषियों का आभारी हूँ। उनकी ज्ञान-साधना का कृतज्ञ हूँ कि आने वाली पीढ़ी के लिए उन्होंने अपने दीर्घकालीन अनुभव - ज्ञानामृत को प्रस्तुत कर महान उपकार किया है।
मैंने अब तक जिन सचित्र आगमों का संपादन किया है उनमें अधिकतर कथा प्रधान होने से चित्रांकन में विशेष कठिनाई नहीं आई। यह आगम आचार-प्रधान होने से इसके लिए चित्रों का चयन और भावों के अनुरूप संयोजना करना अधिक कठिन था । किन्तु मेरे अनन्य सहयोगी और आगम संपादन के अनुभवी विद्वान् श्रीचन्द जी सुराना ने बड़ी कुशलता के साथ इसके चित्रों की आधार भूमि तैयार की है और उसके आधार पर चित्रकार से भावपूर्ण चित्र बनवाये हैं। उनके सहयोग के प्रति मैं हृदय से आभारी हूँ। साथ ही श्री सुरेन्द्र जी बोथरा ने सुन्दर प्रवाहयुक्त भाषा में अंग्रेजी अनुवाद कर इसे अहिन्दीभाषी पाठकों के लिए भी उपयोगी बना दिया है।
सचित्र आगम प्रकाशन के अत्यन्त व्यय पूर्ण कार्य में अर्थ सहायकों का पृष्ठ बल अपेक्षित रहता है। इस कार्य में प्रेरणा और सहयोग दोनों ही मूल्यवान हैं। इस आगम प्रकाशन में पूज्या तपाचार्य श्री मोहनमाला जी म एवं श्रमणी सूर्या विदुषी उप्रवर्तिनी डॉ. श्री सरिता जी म. की प्रेरणा से कुछ उदारमना सज्जनों ने अर्थ सहयोग प्रदान किया है। तथा पूज्य गुरुदेव श्री के प्रति श्रद्ध भक्तों ने भी श्रुत सेवा के पुण्य कार्य में अपना उदार सहयोग प्रदान किया है। वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं।
मुझे विश्वास है इस कार्य में दशवैकालिक सूत्र का अध्ययन - व्यापक रूप में होगा और इस शास्त्र की जीवन-निर्माणकारी शिक्षाएँ सभी के जीवन को आनन्दमय बनायेंगी । इसी विश्वास के
साथ
- उपप्रवर्तक अमरमुनि
पदम धाम, नरेला मण्डी, दिल्ली
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