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५. साहरिय
७. उम्मिस्स
९. लित्त ( लित्त ) -
संहत
दायक अपरिणत
उन्मिश्र
लिप्त
१०. छडिउय
छर्दित
१६ उद्गम, १६ उत्पादन और १० एषणा दोष तीनों मिलकर बयालीस (४२) दोष होते हैं। इसके अलावा भोजन सम्बन्धी पाँच दोष हैं जिन्हें परिभोगैषणा दोष कहा जाता है। ये आहार की सराहना व निन्दा करने के कारण लगते हैं। ये पाँच दोष निम्न प्रकार हैं
१. अंगार,
२. धूम, ३. संयोजना,
४. प्रमाणातिक्रान्त, और
५. कारणातिक्रांत
कुल मिलाकर पिण्डैषणा के ये ४७ दोष माने गये हैं ।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने आगम अनुसंधान करके लिखा है कि ये ४७ दोष आगम में एकत्र कहीं वर्णित नहीं हैं । किन्तु प्रकीर्णरूप में भिन्न-भिन्न आगमों में उपलब्ध हैं। (देखें दसवे आलिय, पृ. १७९)
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६. दायग
८. अपरिणय
उत्तराध्ययन २४ /११-१२ में संकेत रूप में उक्त दोषों का नाम सूचन हुआ है। आचार्य श्री भद्रबाहु ने यह अध्ययन कर्म प्रवाद नामक आठवें पूर्व से उद्धृत बताया है।
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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