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___ इस अध्ययन में भिक्षा के जिन दोषों का वर्णन है, उन्हें हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते
(१) गवेषणा दोष-आहार आदि की उत्पत्ति-सम्बन्धी दोष उद्गम दोष हैं। यह गृहस्थ द्वारा लगते हैं। उद्गम दोष १६ हैं
१. आहाकम्म- आधाकर्म २. उद्देसिय- औद्देशिक ३. पूइकम्म- पूतिकर्म ४. मीसजाय- मिश्रजात ५. ठवणा- स्थापना ६. पाहुडिया- प्राभृतिका ७. पाओयर- प्रादुष्करण ८. कीय (कीअ)- क्रीत ९. पामिच्च- प्रामित्य १०. परियट्टि- परिवर्त्य ११. अभिहड- अभिहत १२. उब्भिन्न- उद्भिन्न १३. मालोहड- मालापहृत १४. अच्छिज्ज- आच्छेद्य १५. अणिसिट्ट- अनिसृष्ट १६. अज्झोयरय- अध्यवतरक
(२) ग्रहणैषणा दोष-आहार आदि ग्रहण करने में लगने वाले दोष उत्पादन दोष कहलाते हैं। ये साधु द्वारा लगते हैं। इनकी संख्या भी १६ है१. धाई- धात्री
२. दूई३. निमित्त- निमित्त
४. आजीव- आजीव ५. वणीमग- वनीपक ६. तिगिच्छा- चिकित्सा ७. कोहक्रोध ८. माण
मान ९. माया
माया १०. लोह
लोभ ११. पुव्विं-पच्छा-संथव- पूर्व-पश्चात्-संस्तव १२. विज्जा१३. मंत
१४. चुण्ण
चूर्ण १५. जोग
योग
१६. मूलकम्म- मूलकर्म (३) एषणा दोष-आहारादि विधिपूर्वक न लेने-देने में अर्थात् शुद्धाऽशुद्धि की भलीभाँति छान-बीन न करने से लगने वाले दोष एषणा दोष हैं। ये गृहस्थ एवं साधु दोनों द्वारा लग सकते हैं। एषणा दोष १० हैं
१. संकिय- शङ्कित २. मक्खिय
३. निक्खित्त- निक्षिप्त ४. पिहिय- पिहित पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) ९१
विद्या
मंत्र
म्रक्षित
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