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विशेषार्थ :
श्लोक १0. किं वा नाहिइ सेय-पावगं-अज्ञानी श्रेय (हित) और पाप (अहित) को कैसे जानेगा? इस विषय में अगस्त्यसिंह चूर्णि में अंधे का दृष्टान्त दिया गया है। जहा अंधो महानगर दाहे पलित्तमेव विसमं वा पविसति-महानगर में आग लगने पर अंधा नहीं जानता कि किस दिशा में भागना चाहिए। वह दिशा ज्ञान शून्य होकर इधर-उधर ठोकरें खाता है
और किसी विषम स्थान पर भी चला जाता है। इसी प्रकार अज्ञानी यह नहीं जान पाता कि असंयमरूपी दावानल से बचने के लिए क्या करना चाहिए। यही भाव चित्र संख्या ८ में दर्शाया गया है।
ELABORATION:
(10) Kim va nahia cheya-pavagam-How could an ignorant person know about merit and sin? About this Agastya Simha has given the example of a blind man. When a city is on fire a blind man does not know in which direction he should run. In the absence of knowledge of his surroundings, he is lost; he stumbles around and proceeds in the direction of suffering. In the same way, an ignorant person is not aware of ways in which to save himself from the conflagration of indiscipline. (illustration No. 8)
११ : सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं।
उभयं पि जाणई सोच्चा जं सेयं तं समायरे॥ सुनकर कल्याण को जानता है और सुनकर ही पाप को जानता है। ये दोनों सुनकर ही समझे जाते हैं। इनमें जो श्रेय है उसी का आचरण करना चाहिए॥११॥
11. Only by hearing does one know about beneficence and the same is true of sin. These two can be understood only by hearing about them. Out of these two, what is good should be followed.
१२ : जो जीवे वि न याणेइ अजीवे वि न याणइ।
जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहीइ संजमं॥
श्रीदशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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