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ओस, हिम (बर्फ या पाला), धुन्ध, ओले, भूमि को भेदकर निकले जल-कण या वर्षा के जल से भीगे शरीर या वस्त्र का अथवा स्निग्ध हुए (गीला) शरीर या वस्त्र का एक बार या बार-बार स्पर्श न करे, एक बार या बार-बार दबावे नहीं, एक बार या बार-बार झाड़े नहीं, एक बार या बार-बार सुखावे नहीं; अन्य से एक बार या बार-बार स्पर्श न करावे, एक बार या बार-बार दबवावे नहीं, एक बार या बार-बार झड़वावे नहीं, एक बार या बार-बार सुखवावे नहीं; अथवा अन्य द्वारा एक बार या बार-बार स्पर्श किये जाने की, एक बार या बार-बार दबाये जाने की, एक बार या बार-बार झाड़े जाने की, एक बार या बार-बार सुखाये जाने की अनुमोदना नहीं करे। यह मैं समस्त जीवन पर्यन्त तीन करण
और तीन योग से पालन करूँगा। अर्थात् मैं जीवन पर्यन्त यह सब मन, वचन, काया से न करूँगा, न कराऊँगा, न करने वाले का अनुमोदन करूंगा।
भन्ते ! मैं अतीत में किये ऐसे जल-समारम्भ का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता हूँ॥१९॥ ABSTINENCE FROM HARMING : THE WATER-BODIED BEINGS
19. Such a disciplined, detached (austere), self-absolved (of șins of the past), and abstinent (of sinful activities in future) bhikkhu or bhikkhuni (male or female ascetic), during the day or the night, alone or in a crowd, and while awake or asleep should not touch, squeeze, flick, or spread-dry, once or repeatedly, the body or clothes drenched or wet with water, dew, snow or frost, mist, hailstone, ground water or rain water; neither should he or she induce others to do so, or approve of others doing so to a lesser or greater degree. All my life I will observe this great vow through three means and three methods. In other words, throughout my life I will, through mind, speech or body, neither do so, induce others to do so or approve of others doing so.
चतुर्थ अध्ययन :षड्जीवनिका Fourth Chapter : Shadjeevanika
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