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भंते ! मैं अतीत में किये दण्ड समारम्भ का प्रतिक्रमण करता हूँ, आत्मसाक्षी से उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्हा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता हूँ। अर्थात् स्वयं को उस पाप प्रवृत्ति से पृथक् करता हूँ ॥ १० ॥
10. One should not indulge in, induce others to do, or approve of any act of harming any of these six life forms.
For my entire life I shall not indulge in harming through three karans (meaning - mind, speech, and body) and three yogas (meaning-doing, inducing others to do, and approving of the deed).
Bhante! I critically review any such harm done in the past, denounce it, censure it, and earnestly desist from indulging in it.
विशेषार्थ :
सूत्र १०. दंडं समारंभेज्ज - दंड समारंभ - सामान्य दृष्टि में दण्ड के कई अर्थ होते हैं, जैसे - किसी का निग्रह या दमन करना । बंधन, क्लेश, प्राण-हरण, धन-हरण आदि सभी दण्ड शब्द में परिभाषित होते हैं । किन्तु अहिंसा के क्षेत्र में दण्ड का अर्थ बहुत व्यापक है। मन-वचन-काया की वह प्रवृत्ति जो किसी जीव को दुःख या परिताप उत्पन्न करती हो - दण्ड है । इसी कारण मन को, वचन को, काया को भी दण्ड कहा गया है। उक्त प्रकार की प्रवृत्ति करना दण्ड समारम्भ कहलाता है।
तिविहं तिविहेण-तीन करण तीन योग करना, कराना और उसका अनुमोदन करना ये तीन करण अर्थात् साधन हैं। मन-वचन-काय ये तीन योग (विधि) हैं। कोई मन, वचन, काया को तीन करण करना, कराना, अनुमोदन करने को योग कहते हैं ।
निन्दा-गर्हा-अज्ञानभाव से किये पापों के प्रति पश्चात्ताप ग्लानि अनुभव करना तथा आत्मालोचन करना निन्दा है। दूसरों के समक्ष आत्म-निन्दा करना गर्हा है । ( आचार्य हरिभद्र के कथनानुसार आत्मसाक्षिकी निन्दा, परसाक्षिकी गर्हा) अगस्त्यसिंह चूर्णि के अनुसार - भविष्य में पाप न करने का संकल्प करना गर्दा है। ELABORATION:
(10) Dand
samarambhejja-Dand
means to inflict
punishment; to harm. The general meaning of this term includes:
चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका Fourth Chapter : Shadjeevanika
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