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________________ प्रस्तावना वैदिक संस्कृति के मूलभूत शास्त्रों को 'वेद' और बौद्ध परम्परा के आधारभूत शास्त्रों को 'पिटक' कहा जाता है। वैसे ही जैनधर्म के आधारभूत शास्त्रों को 'आगम' कहा जाता है। वैदिक मान्यतानुसार वेद अपौरुषेय हैं, अर्थात् उनका कर्ता कोई पुरुष नहीं है। वर्तमान धारणा के अनुसार अनेक ऋषियों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संकलन वेद है। पिटक के मूल प्रवक्ता तथागत बुद्ध व अन्य थेर माने जाते हैं। आगम के कर्ता विशिष्ट ज्ञानी होते हैं। सिद्धान्त, भाव या अर्थ रूप में आगम के प्रवक्ता सर्वज्ञ वीतराग अरिहंत होते हैं। उनके भावों को सूत्र या शास्त्र रूप प्रदान करते हैं विशिष्ट ज्ञानी चौदह पूर्वधर गणधर या स्थविर। इन विशिष्ट ज्ञानियों को श्रुतकेवली भी कहते हैं। वर्तमान में उपलब्ध आगमों के प्रथम सूत्रकार प्रथम पट्टधर भगवत् सुधर्मा स्वामी हैं तथा अन्य अनेक श्रुतकेवली। जैसाकि कहा है अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथति गणहरा निउणं। सासणस्स हियट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तइ -आव. नि. ९२ आगमों को द्वादशांगी या गणिपिटक भी कहते हैं। द्वादशांगी नाम सबसे प्राचीन है। द्वादशांगी का अर्थ है-१२ अंग। वर्तमान में ११ अंग उपलब्ध हैं जिन्हें अंग आगम कहते हैं। बारहवें अंग का नाम दृष्टिवाद है जो वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं है। दृष्टिवाद के अनेक भेदों में एक भेद है 'पूर्वगत' या 'पूर्व'। उत्पाद पूर्व, प्रत्याख्यान पूर्व, ज्ञान प्रवाद, सत्य प्रवाद आदि इसके अनेक भेद हैं। वर्तमान में वह भी उपलब्ध नहीं हैं किन्तु इनके सारांश रूप में उद्धृत कुछ अंश उपलब्ध माना KAN जाता है। जिसका सम्बन्ध प्रस्तुत दशवैकालिक सूत्र के साथ जुड़ता है। आगमों के अनेक भेद-प्रभेदों में आजकल ४५ आगम तथा ३२ आगम की मान्यता लिये दो परम्परा प्रचलित है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा ४५ आगम मानती है जबकि स्थानकवासी और तेरापंथी परम्परा ३२ आगमों को ही मूलभूत प्रामाणिक मानती हैं। बाकी ग्रन्थ उनके विस्तार रूप उत्तरकालीन माने जाते हैं। ___३२ या ४५ आगमों की मान्यता में दशवैकालिक सूत्र मूल आगमों की श्रेणी में आता है और इसके शास्त्र रूप में रचनाकार श्रुत-केवली शय्यंभवाचार्य माने जाते हैं। (१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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