SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेकिन विचार किया जाय तो यह हत्या का ही एक प्रकार है। विष-प्रयोग द्वारा डॉक्टर उस रोगी की हत्या कर रहा है और पीड़ा से घबड़ाकर मृत्यु की इच्छा करने वाला-स्वेच्छा-मृत्यु का वरण करने वाला रोगी अपनी आत्महत्या कर रहा है। फिर इसे संलेखना कैसे कहा जा सकता है ? संलेखना का साधक तो संकटों से घवड़ाकर मृत्यु की इच्छा करता ही नहीं, वह तो शांति और समाधिपूर्वक मृत्यु का स्वागत करता है, मृत्यु को महोत्सव मानता अतः स्वेच्छा-मृत्यु को समाधिमरण मानना एक सर्वथा भ्रान्त धारणा है। संथारा 'संलेखना' के साथ 'संथारा' शब्द का प्रयोग सामान्यतः प्रचलित है। आगमों के अनुसार 'संथारा' का शाब्दिक अर्थ-'संस्तारक अथवा बिछौना' है। किन्तु संलेखना के प्रस्तुत सन्दर्भ में इसका अर्थ यहाँ अनशन' है। 'संलेखना-संथारा' यह सामूहिक प्रयोग अधिकांशतः प्राप्त होता है तथा यहाँ संथारा का अर्थ शरीर तथा संसार के प्रति आसक्ति का त्याग है। संथारा क्या है? __संथारा एक विशिष्ट साधना पद्धति है। साधक जब संथारा स्वीकार करता है तब वह पूर्ण रूप से आसक्तिरहित होता है। अपने शरीर से सम्बन्धित वस्तुओं और संसार के प्रति वह विरक्त हो जाता है, आत्मिक भावों में रमण करता है। उस समय उसके मन में जीवन और मृत्यु का कोई विकल्प ही नहीं रहता। वह तो आत्मिक अनुभूति और आत्मानन्द में लीन रहता है। वह अनशन करता है, भोजन आदि नहीं लेता है-यह केवल शाब्दिक वर्णन है। वास्तविकता यह है उसे आहार-पानी की इच्छा ही नहीं होती, अठारह प्रकार के पापों की ओर उसका मन ही नहीं जाता, वह तो समरसी भाव में ही निमग्न रहता है; जहाँ न भूख-प्यास है, न विषय विकार हैं और न किसी प्रकार की इच्छा, आकांक्षा तथा अभिलाषा ही है एवं न किसी प्रकार का भय ही है-न जन्म का, न मृत्यु का और न उपसर्गों व परीषहों का। संथारा मृत्यु का वरण नहीं अपितु संवरण है। जन्म-मृत्यु को निःशेष करने की एक प्रक्रिया है। यदि संथारा की उत्कृष्ट साधना हो जाय तो साधक आवागमन के चक्र से विमुक्त होकर मुक्ति का अव्याबाध अनन्त सुख प्राप्त कर लेता है। और यदि साधना में कुछ कमी रह गई तो सुगति तो निश्चित है ही। लेकिन साधक सुगति आदि की इच्छा नहीं करता, उसका लक्ष्य तो पूर्ण आत्म-शुद्धि होता है। उसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह साधना करता है। संथारा के प्रकार संथारा के मुख्य दो प्रकार हैं-(१) सागारी अथवा आगार सहित, और (२) सामान्य। सागारी संथारा किसी विशेष आपत्ति, संकट आदि के समुपस्थित होने पर किया जाता है और संकट समाप्त होने पर संथारा भी समाप्त कर दिया जाता है। यह जीवनभर के लिए नहीं होता। संकट समाप्त होने पर इसकी मर्यादा पूर्ण हो जाती है। ___ अन्तकृद्दशा महिमा .३७३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy