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शांत होता, परन्तु ज्योंही राज सिंहासन पर आकर बैठता, पिता की याद में वह शोकमग्न हो उठता ।
___ -(निरयावलिका सूत्र) इस शोक की निवृत्ति के लिए अन्त में मंत्रिमण्डल की सलाह पर उसने राजगृह को भी छोड़ दिया और चम्पानगरी को अपनी राजधानी बनाया ।
यद्यपि राजा कोणिक ने राज्यलिप्सु बनकर पिता को कारागार में डालकर बहुत ही निन्दनीय कार्य किया, परन्तु बाद में माता के समझाने पर अपने दुष्कृत्य पर अनुताप/पश्चात्ताप करके वह माता-पिता के प्रति अत्यन्त आदर भाव रखने लगा । इसीलिए जैन आगमों में उसे माता-पिता का विनीत कहा है । भगवान महावीर का वह परम भक्त था ।
औपपातिक सूत्र में बताया है-राजा कोणिक ने एक प्रवृत्तिवादुक पुरुष रखा था, जो महान आजीविका पाता था । उसके अधीन अनेक कर्मकर रहते थे, जिनसे भगवान महावीर के प्रतिदिन के समाचार उसे मिलते थे । और वह प्रवृत्तिवादुक पुरुष भगवान महावीर के प्रतिदिन के समाचार प्रातःकाल राजा कोणिक को अवगत कराता रहता था ।
औपपातिक सूत्र के टीकाकार ने राजा के महान व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए बताया है-राजा में महाहिमवान पर्वत के समान पाँच विशेषताएँ होनी चाहिए । १. हिमवान पर्वत जिस प्रकार भरतक्षेत्र की मर्यादा करने वाला है, उसी प्रकार राजा राज्य
की मर्यादा का रक्षक होता है । २. पर्वत जैसे बाहरी उपद्रवों से क्षेत्र की रक्षा करता है, वैसे ही राजा बाहरी आक्रमणों से
राज्य की रक्षा करता है । ३. पर्वत जिस प्रकार अनेक जड़ी-बूटियों एवं औषधियों का भण्डार होता है, उसी प्रकार
राजा क्षमा, शौर्य, गांभीर्य, उदारता, दान आदि गुणों का भंडार होता है । ४. पर्वत जिस प्रकार तूफानों और झंझावातों में अचल रहता है, उसी प्रकार राजा अपनी
नीति एवं नियमों में अचल रहता है । ५. पर्वत जैसे सभी प्राणियों का आधार होता है, वैसे राजा भी प्रजा का आधार होता है । कोणिक अपनी प्रजा का पिता, रक्षक, शान्तिकारक और सर्वदा सबका हित करने वाला था ।
• आर्य जम्बू ने भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् १६ वर्ष की आयु में आर्य सुधर्मा के पास दीक्षा ली थी, वीर निर्वाण के १२ वर्ष पश्चात् आर्य सुधर्मा को केवलज्ञान हुआ । आगमों की वाचना का यह प्रसंग सुधर्मा स्वामी की छद्मस्थ अवस्था का ही है । अतः संभव है यह प्रसंग जम्बू स्वामी की २४-२८ वर्ष की अवस्था के बीच का ही हो । • अन्तेवासी का अर्थ है-प्रिय शिष्य, अथवा सदा निकट रहने वाला ।
अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग
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