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________________ पच्चूसकालसमयंसि बंधुमईए भारियाए सद्धिं पच्छिपिडगाई गिण्हइ गिण्हित्ता, सयाओ गिहाओ पडिणिक्समइ, पडिणिक्वमित्ता रायगिहं णयरं मज्झं मझेणं णिगच्छइ, णिगच्छिता जेषेव पुष्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बंधुमईए भारियाए सद्धिं पुष्फुच्चयं करेइ । गोष्ठिक पुरुषों का अनाचरण उस राजगृह नगर में “ललिता'' नाम की एक गोष्ठी (मित्र मण्डली) रहती थी जो अत्यन्त समृद्ध तथा अपराभूत-किसी से हार मानने वाली नहीं थी और जो वह कर दे वो ही ठीक है ऐसी आज्ञा भी उसे प्राप्त थी । (किसी समय नगर के राजा का कोई हित कार्य सम्पादन करने के कारण राजा ने उस मित्र मण्डली पर प्रसन्न होकर अभयदान दे दिया कि वे अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य करने में स्वतंत्र हैं । राज्य की ओर से उन्हें संरक्षण था, इस कारण यह गोष्ठी बहुत उच्छृखल और स्वच्छन्द बन गई थी ।) एक दिन राजगृह में एक प्रमोद हर्ष उत्सव मनाने की घोषणा हुई । इस पर अर्जुनमाली ने अनुमान लगाया कि ‘कल इस उत्सव के अवसर पर फूलों की बहुत भारी मांग होगी' इसलिये उस दिन वह प्रातःकाल जल्दी उठा और बांस की डलिया लेकर अपनी पत्नी बंधुमती के साथ जल्दी घर से निकलकर नगर में होता हुआ फुलवाड़ी में पहुँचा और अपनी पत्नी के साथ फूलों को चुन-चुनकर एकत्रित करने लगा । Maxim 6 : Here in Rājagrha city dwelt a bunch of friends, named Lalitā, which was very rich and unsurpassed i.e., none can defeat that gang. That gang also possessed the royal mandate that 'what ever the members of this gang do is quite correct.' . १७६ अन्तकृदशा सूत्र : षष्ठम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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